________________
५४
६ तमः प्रभा नरक :
इसका पिड़ एक लाख एक हजार योजन का दल
जैनागम स्तोक संग्रह
जिसमें ३ पाथड़ा व २ आंतरा है। के लिये ९६९९५ नरकावास व बोल - १ बीस हजार योजन का घनवात ३ असंख्यात योजन का आकाशास्ति काय है ।
सोलह हजार योजन का है । जिसमें से नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़कर वीचमें एक लाख चौदह हजार योजन का पोलार है । इनमें असख्यात नेरियों के रहने असंख्यात कुम्भिये है, इसके चार घनोदधि २ असंख्यात योजन का तनुवात ४ असंख्यात योजन का
७ तमस् तमःप्रभा नरक :
इसका पिंड एकलाख आठ हजार योजनका है । ५२ ।। हजार योजन का दल नीचे व ५२ ॥ | हजार योजन का दल ऊपर छोड कर वीच मे तीन हजार योजन का पोलार है । जिसमे एक पाथड़ा है, आंतरा नही | यहां असंख्यात नेरियों के रहने के लिये असंख्यात कुम्भिये व पांच नरकावास है । पांच नरकावास- १ काल २ महाकाल ३ रुद्र ४ महारुद्र ५ अप्रतिष्ठान । इसके नीचे चार वोल १ वीस हजार योजन का घनोदधि है २ असख्यात योजन का घनवात है ३ असंख्यात योजन का तनुवात है, ४ असख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है । इसके बारह योजन नीचे जाने पर अलोक आता है ।
नरक की स्थिति जघन्य दश हजार वर्षकी उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की । इनका "कुल" पच्चीस लाख करोड़ जानना । २ तिर्यञ्च का विस्तार:
तिर्यञ्च के पांच भ ेद :
१ जलचर २ स्थलचर ३ उरपर ४ भुजपर ५ खेचर । इनमें से प्रत्येक के दो भेद १ संमूच्छिम, २ गर्भज ।
-----