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जैनागम स्तोक संग्रह __ ४ महुरग-उत्कृष्ट एक हजार योजन का लम्बा महुरग (महोरग) कहलाता है। यह अढाई द्वीप के बाहर रहता है। उरपर (सर्प)) का "कुल" दस लाख करोड़ जानना। ४ भुजपरिसर्प :___जो भुजाओं (हाथों) के बल चले सो भुजपरिसर्प कहलाते है । इनके विशेष नाम-१कोल,२ नकुल, (नोलिया) ३ चूहा, ४ छिपकली ५ ब्राह्मणी, ६ गिलहरी, ७ काकीड़ा, ८ चन्दन गोह (ग्राह) ६ पाटलागोह (ग्राहविशेष) इत्यादि अनेक नाम है। इनका "कुल" नव लाख करोड जनना।
५ खेचर :-आकाश में उड़नेवाले जीव खेचर (पक्षी) कहलाते है। इनके चार भेद-१चर्म पंखी, २ रोम पंखी, ३ समुद्ग पखी, ४ वीतत (विस्तृत) पखी।
१ चर्म पंखी-बगुला, चामचिड़ी कातकटिया, चमगीदड़ इत्यादि चमड़े की पांख वाले सो चर्म पंखी, ।
२ रोम पखी-मयूर (मोर) कबूतर, चकले (चिड़ी) कौवे, कमेडी मैना, पोपट चील, बगुले, कोयल, ढेल, शकरे, हौल, तोते, तीतर, वाज इत्यादि रोम (बाल) की पांख वाले सो रोमएखी। ये दो प्रकार के पक्षी अढाई द्वीप के बाहर भी मिलते है और अन्दर भी ।
३ समुद्ग पंखी-डब्बे जैसी भीड़ी हुई गोल पांख वाले सो समुद्ग पंखी।
४ वीतत पंखी-विचित्र प्रकार की लम्बी व पोली पाख वाले सो वीतत पंखी । ये दोनो प्रकार के पक्षी अढाई द्वीप के बाहर ही मिलते है । खेचर (पक्षी) का "कुल" वारह लाख करोड जानना ।
गर्भज तिर्यच की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त की उत्कृष्ट तीन पल्यो