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जैनागम स्तोक सग्रह
४ पंकप्रभा में रक्त मास का कीचड़ (कादव) है। ५ धूम्रप्रभा में धूम्र (धुवा) है। ६ तमस्प्रभा में अधकार है । ७ तमस्तमःप्रभा मे घोरानघोर (घोरातिघोर) अंधकार है।
नरक का विवेचन १ रत्नप्रभा नरक :
इस का पिड एक लाख अस्सी हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार का दल नीचे व एक हजार का दल ऊपर छोड़कर बीच मे एक लाख ७८ हजार योजन की पोलार है । जिसमें १३ पाथड़ा ५२ आंतरा है, इनमें ३० लाख नरकावास है, जिनमे असंख्यात नारक और उनके रहने के लिये असख्यात कुम्भिये है । इसके नीचे चार वोल हैं। १ वीस हजार योजन का घनोदधि है । २ असंख्यात योजन का धनवात है ३ असंख्यात योजन का तनु वात है । और ४ असंख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है। २ शर्कराप्रभा नरक :
इस का पिड एक लाख बत्तीस हजार योजन का है। जिनमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़कर वीच में एक लाख और तीस हजार का पोलार है। इनमें ११ पाथड़ा व १० आंतरा है जिनमें असंख्यात नारकों के रहने के लिये २५ लाख नरकावास और असंख्यात कुम्भिये है । इसके नीचे चार बोल १ वीस हजार योजन का धनोदधि है २ असंख्यात योजन का घनवात है ३ असख्यात योजन का तनुवात है । ४ असंख्यातयोजन का आकाशास्तिकाय हैं। ३ बालुप्रभा नरक :
इसका पिंड एक लाख और २८ हजार योजन का है। जिसमे से