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छ काय के बोल
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की अग्नि ११ अन्य काष्टादि के घर्षण से उत्पन्न होने वालो अग्नि, १२ सूर्यकान्त (आई गलास) से उत्पन्न होने वाली अग्नि, १३ दावानल की, अग्नि, १४ बडवानल की अग्नि, ।
इसके सिवाय अग्नि के और भी अनेक भेद है। एक अग्नि की चिनगारी मे भगवान ने असख्यात जीव फरमाये है। एक पर्याप्त की नेत्राय से असंख्यात अपर्याप्त है। जो जीव इनकी व्या पालेगा, वह इस भव मे निरावाध सुख पावेगा । तेजस् काय का आयुष्य जघन्य अन्तर्महूर्त का, उत्कृष्ट तीन अहोरात्रि (दिन रात) का । इसका सस्थान सुइयो की भारी के आकारवत् है । तेजस् काय का 'कुल' तीन लाख करोड जानना।
वायु काय वायु काय के दो भेद-१ सूक्ष्म, २ बादर ।
सूक्ष्म :-सर्व लोक मे भरे हुए है। हनने से हनाय नही, मारने से मरे नही, अग्नि में जले नही, जल में डुबे नही, आँखो से दिखे नहीं व जिस के दो भाग होवे नही, उसे सूक्ष्म वायु कहते है।
बादर :-लोक के देश भाग मे भरे हुवे है। हनने से हनाय, मारने से मरे अग्नि में जले, आँखों से दिखे व जिसके दो भाग होवे उसे बादर वायु काय कहते है।
बादर वायु काय के १७ भेद ।
१ पूर्व दिशा की वायु, २ पश्चिम दिशा की वायु, ३ उत्तर दिशा की वायु, ४ दक्षिण दिशा की वायु, ५ ऊर्ध्व दिशा की वायु, ६ अधो दिशा की वायु ७ तिर्यक दिशा की वायु, ८ विदिशा की वायु, ६ चक्र पडे सो भवर वायु १० चारो कोनो में फिरे सो मण्डल वायू,