Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
२८
जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका महाभारतमें उत्तर पञ्चालों और दक्षिण पञ्चालोंका उल्लेख मिलता है जो वैदिक साहित्यमें नहीं है। इस परसे यह अनुमान किया जाता है कि वैदिक कालके पश्चात् पञ्चालाने अपना राज्य बढ़ाया । मोटे तौरपर बरेली, बदायुं, फर्रुखाबाद तथा उत्तर प्रदेश के इनसे सम्बद्ध जिलोंमें पञ्चालोंका राज्य था।
प्राचीन वैदिक साहित्यमें कोसल और विदेहका निर्देश नहीं है। इनका प्रथम निर्देश शतपथ ब्राह्मण (१,४-१-१० ) में मिलता है। उल्लेखोंसे प्रकट होता है कि कोसल और विदेह परस्परमें मित्र थे तथा उनमें और कुरु पञ्चालोंमें कुछ भेद होनेके साथ ही साथ शत्रुता भी थी। ब्राह्मण धर्मका जैसा जोर कुरुपञ्चालोंमें था वैसा जोर कोसलोंमें नहीं था। ऐसा माना जाता है कि विदेहराज जनक उपनिषद् दर्शनका प्रमुख संरक्षक था और उसके कालमें विदेहको प्राधान्य मिला। कोसल और विदेहके साथ-साथ काशीको भी प्राधान्य उत्तर वैदिक कालमें मिला। काशी
और विदेह भी परस्परमें सम्बद्ध थे। काशी और कोसल भी एक साथ पाये जाते हैं। भरतराज शतानीक सात्राजितके द्वारा काशीराज धृतराष्ट्र के पराजयकी एक कथा ( वै० ए० पृ० २५५) पाई जाती है । उस पराजयके फलस्वरूप काशीराज धृतराष्ट्रको शतपथ ब्राह्मणके ( १३-५,४,१६) कालतक यज्ञाग्निको प्रज्वलित करना छोड़ना पड़ा। ___इन पूर्वीय जातियोंके साथ कुरु पञ्चालोंका सम्बन्ध और जो कुछ भी हो, किन्तु मित्रता पूर्ण नहीं था। कहा जाता है कि इसका कारण दोनोंमें राजनैतिक और सांस्कृतिक विरोध था (वै० ए० पृ० २५५ )।
वैदिक सभ्यताके प्राचीन केन्द्रसे दूरवर्ती मगधोंका उल्लेख केवल उत्तरकालीन वैदिक साहित्यमें मिलता है, और वह भी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org