Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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मंगलाचरशा/३
यद्यपि इस गाथा में देवता-नमस्कार रूप मंगल किया गया है तथापि तालप्रलम्ब' सूत्र के देशामर्थक होने से मंगलादि छहों अधिकारों का प्ररूपण करता है । कहा भी है
मंगल-निमित-हेऊ परिमारणं णाम तह य कतारं ।
बागरिय छ प्पि पच्छा वक्खारण सत्थमाहरिया ॥ मङ्गल, निमित्त, हेतु, परिमाण, नाम और कर्ता इन छह अधिकारों का व्याख्यान करके प्राचार्य शास्त्र का व्याख्यान करें ।।।
_ 'मगि' धातु मे मंगल शब्द निष्पन्न हुआ है ।२ मंगल का निरुक्ति अर्थ -जो मल का गालन करे, घात करे. दहन करे, नाश करे, शोघन करे, विध्वंस करे वह मंगल है। द्रव्य और भावमल के भेद से मल दो प्रकार का है। द्रव्यमल भी दो प्रकार का है बाह्य द्रव्यमल और अभ्यन्तर द्रव्यमल । पसीना, धलि आदि बाह्य द्रव्य मल है। कठिनरूप से जीवप्रदेणों से बंधे हुए प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशरूप भेदों में विभक्त ज्ञानावरगादि पाठ प्रकार के कर्म अभ्यन्तर द्रव्यमल हैं। प्रज्ञान और अदर्शन आदि परिणाम भावमल हैं। इस प्रकार के मल का जो गालन वारे, बिनाश करे, वंस करे बह मंगल है। अथवा मंग' शब्द मुखवाची है, उसे जो लावे, प्राप्त करे, वह मंगल है।'
मंगल, पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशम्न, शिव, भद्र और सौग्य इत्यादि मंगल के पर्यायवाची नाम हैं। प्राचीन प्राचार्यों ने अनेक शास्त्रों में भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा मंगलरूप अर्थ कहा है। अथवा यदि एक शब्द से प्रकृत विषय समझ में न आवे तो दूसरे शब्दों द्वारा समझ सके इसलिए यहाँ मंगलरूप अर्थ के पर्यायवाची अनेक नाम कहे गये हैं।
___ जीव मंगल है, किन्तु मभी जीव मंगलरूप नहीं हैं, क्योंकि द्रव्याथिकनय की अपेक्षा मंगलपर्याय से परिगान जोव को और पर्यायाथिकनय की अपेक्षा से केवलज्ञानादि पर्यायों को मंगल माना है।
शङ्का-किस कारण से मंगल उत्पन्न होता है ? समाधान-जीब के प्रौदयिक एवं प्रौपशमिक प्रादि 'भावों मे मंगल उत्पन्न होता है । शङ्का-प्रौदयिक भाव मंगल का कारण कैसे हो सकता है ?
समाधान-पूजा, भक्ति एवं अणुव्रत-महावत आदि प्रशस्त-रागरूप प्रौदयिक भाव और तीर्थङ्कर प्रकृति के उदय से उत्पन्न प्रौदयिक भाव मंगल के कारण हैं।
शङ्का - जोब में मंगल कब तक रहता है ?
समाधान-नाना जीवों की अपेक्षा मंगल सर्बदा रहता है और एक जीव की अपेक्षा अनादिअनन्त, सादि-अनन्त तथा सादि-सान्त रहता है ।
शङ्का-एक जीव के अनादिकाल से अनन्तकाल तक मंगल कैसे सम्भब है ?
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१. अ. पृ. १ पृ. ८ । २. घ. पु १० 1 ३. ध. पु. १ पृ. ३३.३४ । ४. ध. पु. १ पृ. ३२-३३ । ५. श्र. पु. १ पृ. ३६ ।