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श्रमण-सूत्र
(७) उझियधम्मा % उज्झितधर्मा-जो आहार अधिक होने से अथवा अन्य किसी कारण से फेकने योग्य समझ कर डाला जा रहा हो, वह ग्रहण करना ।
आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध पिण्डैपणा अध्ययन में तथा स्थानांगसूत्र में पिण्डै षणा का वर्णन आता है। यह उत्कृष्ट त्याग अवस्था की भिक्षा-सम्बन्धी भूमिकाएँ हैं । ___श्राचार्य हरिभद्र पाठान्तर के रूप में 'सतरहं पिंडेसणाणं' की जगह 'सतण्हं पाणेसणाण' का उल्लेख भी करते हैं । ये सात पानेषणा पिण्डैषणा के समान ही हैं । 'सप्तानां पानैषणानाम् केचित् पठन्ति । ता अपि चैवंभूता एव ।' आचार्य हरिभद्र ।
आठ प्रवचन-माता ___ प्रवचन-माता. पाँच समिति और तीन गुप्ति का नाम है। प्रवचन माता इसलिए कहते हैं कि द्वादशांग वाणी का जन्म इन्हीं से हुआ है । अर्थात् सपूर्ण जैन वाङमय की आधार-भूमि पाँच समिति और तीन गुप्ति ही हैं । माता के समान साधक का हित करने के कारण भी इनको माता कहा जाता है । इनका विशद वर्णन आगे यथास्थान किया जाने वाला है। दशविध श्रमण धर्म में श्रामण योग ___ श्रमण, साधू को कहते हैं । उसका शान्ति, मुक्ति श्रादि दशविध धम'--जिसका वर्णन आगे किया जाने वाला है-श्रमणधर्म कहलाता है । दशविध श्रमणधम में श्रामण योग क्या है ? इसके लिए यह बात है कि श्रमण सम्बन्धी योग = कर्तव्य को श्रामण योग कहते हैं । दशविध श्रमण धर्म में श्रमण का क्या कर्तव्य है ? कर्तव्य यह है कि क्षमा आदि दश विध श्रमण धर्म का सम्यक् रूप से आचरण करना चाहिए, सम्यक् श्रद्धान% विश्वास रखना चाहिए और यथावसर सम्यक प्ररूपण = प्रतिपादन भी करना चाहिए। आचार्य हरिभद्र कहते हैं-'श्रामणयोगानाम् = सम्यक प्रतिसेवन-श्रदान-प्ररूपणाला णानां यत्खण्डितम् ।।
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