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श्रमण-सूत्र
सम्यग दर्शन एवं सम्यक् चारेत्र का। यह जैन धर्म का रत्नत्रय रूप मोक्षमार्ग है । 'सम्यग दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः ।' श्री उमास्वाति रचित तत्त्वार्थसूत्र १ । १ । ____ मूल में सम्यग शब्द का उल्लेख नहीं है । परन्तु केवल, ज्ञान शब्द भी कुज्ञान का विरोधी होने से अपने अंदर सम्यक्त्व लिए हुए है। इसी प्रकार दर्शन, कुदर्शन की व्यावृत्ति करता है और चारित्र, कुचारित्र की । - मूल पाठ है 'नाणे तह दसणे चरित? । परन्तु प्राचार्य हरिभद्र ने यहाँ तह शब्द का उल्लेख नहीं किया है । श्रुत ___ श्रुत का अर्थ श्रुतज्ञान है। वीतराग तीर्थंकर देव के श्रीमुख से सुना हुना होने से आगम साहित्य को श्रुत कहा जाता है। श्रुत, यह अन्य ज्ञानों का उपलक्षण है, अतः वह भी ग्राह्य हैं। श्रुत का अतिचार है-विपरीत श्रद्धा और विपरीत प्ररूपणा । सामायिक
सामायिक का अर्थ समभाव है । यह दो प्रकार से माना जाता है.सम्यक्त्व रूप और चारित्र रूप । चारित्र पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि है। और सम्यक्त्व जिन:प्ररूपित सत्य-मार्ग पर श्रद्धा है । इसके दो भेद हैं-निसर्गज और अधिगमज । सामायिक में सम्यक्त्व
और चारित्र दोनों का अन्तर्भाव होने से यह आक्षेप दूर हो जाता है कि-यहाँ ज्ञान और चारित्र के साथ सम्यग दर्शन का उल्लेख क्यों नहीं किया गया ? चार कषाय
चार कषाय का वर्णन अागे कषाय-सूत्र में आने वाला है। यहाँ केवल इतना ही. वक्तव्य है कि-मूल-पाठ 'च उरह कसायाणं' है। जिसका 'जं खंडियं में विराहियं के साथ योग होने पर अर्थ होता हैयदि चार कषायों का खण्डन किया हो तो मिच्छामि दुक्कडं ! श्राप
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