Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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विजयसिंह महाराज आय, सेठ को कही थी ऐसी क्रोड़ एक रुपियां (मोहरा) हूँ की, मेरे दरकार है। खोल के खजानो सेठ, छकड़ा से छकड़ा जोड़ । छोटो सो काम कीनो मुल्कां माहिजहार है ॥
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
उस समय यह माना जाता था कि मारवाड़ में समृद्धि की दृष्टि से कुल अढाई घर हैं। एक घर रीयाँ के सेठों का, दूसरा बिलाड़ा के दीवानों का तथा आधा घर जोधपुर दरबार का । इतनी समृद्धि होते हुए भी रीयाँ के सेठ | मुणोत साहब अत्यन्त सादा जीवन व्यतीत करते थे। यह रीयाँ गाँव पीपाड़ का ही सहोदर एवं आचार्य श्री हस्ती के नाना के गोत्री पूर्वजों का गाँव था ।
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वर्तमान काल में रीयाँ एक साधारण ग्राम के रूप में शेष है। पीपाड़ कृषि, वाणिज्य एवं उद्योग धन्धों की दृष्टि | से आस-पास के ग्रामों का केन्द्र बना हुआ है, जबकि पूर्वकाल में हुए राज- विप्लवों आदि के कारण रीयाँ के | श्रेष्ठि-परिवार पीपाड़, कुचामन, अजमेर, पूना, सातारा आदि विभिन्न नगरों में रीयाँ की समृद्धि एवं प्राचीन गौरव को साथ लेकर जा बसे । रीयाँ के खण्डहर इस बात के साक्षी हैं कि यह कभी एक वैभवशाली नगर (कस्बा) रहा है।
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बोहरा कुल
पुण्यधरा पीपाड़ में विक्रम की बीसवीं शती में ओसवाल वंशीय श्रेष्ठिवर श्री दानमलजी बोहरा एक प्रतिष्ठित | श्रावक थे। आपका परिणय पीपाड़ के ही श्री हमीरमलजी (सुपुत्र श्री गम्भीरमलजी गाँधी) की सुपुत्री नौज्यांबाई के साथ सम्पन्न हुआ। श्री दानमलजी बोहरा की पीपाड़ एवं निकटवर्ती ग्रामों में व्यापार-व्यवसाय में प्रामाणिकता की | दृष्टि से अच्छी छवि थी। आस-पास के ग्रामों में उनका लेन-देन का व्यवसाय था । अपने वाणिज्य-व्यवसाय के साथ आप धर्माराधन हेतु तत्परतापूर्वक सदैव सन्नद्ध रहते थे ।
समय बीतने के साथ श्री दानमलजी बोहरा की धर्मनिष्ठ धर्मपत्नी श्रीमती नौज्यांबाई की कुक्षि से दो पुत्रों रामलाल एवं केवलचन्द ने तथा चार पुत्रियों सद्दाबाई, रामीबाई, सुन्दरबाई एवं चुन्नीबाई ने जन्म लिया । नौज्यांबाई सांसारिक दृष्टि से जितनी दूरदर्शी एवं कर्मठ गृहिणी थी उतनी ही संस्कार - दात्री माता के रूप में भी सजग थी । बोहरा परिवार एक संस्कारशील परिवार था। धर्म के प्रति सबमें अगाध आस्था थी। श्री दानमलजी बोहरा जैन मुनियों और आचार्यों के चातुर्मासों में पीपाड़ के अलावा रीयां, सोजत, मेड़ता आदि स्थानों पर जाकर भी धर्माराधन - तपाराधन की क्रियाएं निष्ठापूर्वक करते थे । आप पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वाह भी | कर्तव्य भावना के साथ यथासमय करने हेतु उद्यत रहते थे। आपने अपनी चारों अंगजात कन्याओं का विवाह सुयोग्य एवं कुलीन परिवारों में किया । पुत्रों को उन्होंने वाणिज्य-व्यवसाय में निष्णात बनाने का प्रयत्न किया । दोघ
संसार विचित्र है। यहां पर सब दिन सुख के नहीं होते हैं । सुख-दुःख की अवस्थाएं बदलती रहती हैं। | महाकवि कालिदास ने कहा भी है
कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं, दुःखमेकान्ततो वा ।
नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण ॥ - मेघदूत
संसार में किसी को न तो आत्यन्तिक (पूर्ण) सुख मिला है और न ही ऐकान्तिक दुःख । सुख एवं दुःख की दशा रथ के चक्र की भाँति परिवर्तनशील है ।