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सपना-म मित्र स्थान में कोई प्राचार्य अवधिदर्शन नहीं मानते हैं। पर यहां गो. क. पा. १२०-६२१-६२२ के अनुसार लिखा है। (मरारी
गो. क. कोष्टक नं० २१४ देखो)। २४ गाहना-कोष्टक नम्बर १ के मुजिन आनना परन्तु यहाँ उत्कृष्ट प्रवगाहना महामत्स्य की जानना, विशेष भुनासा को मं० १६ मे १६ देखो। २५ च प्रकृति-26 जानावरणीय ५, दर्शनावरणीय : (निद्रानिद्रा, प्रचनाप्रचना, स्थानद्ध ये ३ महानिद्रा घटाफर ६) मोहनोपकषाय ११
(मन्नानुबंधी कवाय ४, नमक वेद १. स्त्री वेद१. ६ पटाकर १९) वेदनीय २, नाम कम के ३६(मनुष्य गति १, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, देवगति १, देवगत्यानपूर्वी, पंचन्दय जाति १, प्रौदारिक रोर, बैंकियिक शरीर १, तेजस शरीर१, कार्मास शरीर १, औदारिक अंगोपांन .व. अंनापांन. समचतुरस्रमस्थान १, वज्जवृषभ नाराच मंहनन, निर्माण १, स्पर्शादि ४, प्रशस्त विहायोगति ! अगुहलपु१, उपधान १, परधान !, श्वासोच्छवास १, प्रत्येक !, बादर , म १, पर्याप्त १, सुभग १, स्थिर १,
अस्थिर १ शुभ, अशुभ १, मुस्वर १, मादय १, यमः कायि ३६) उन्नगोत्र १, पंतगय ५ ये ७४ प्रकृतियां जानना। २६ उबय प्रकृतियां - -१०० को नं० के १११ प्रकृनियों में में अनंतानुबंधोय कषाय 1, एकेन्दिवादि जानि ४, लियं च मनुष्य देवगत्यानुपूर्वी ३,
स्थावर १.पे १२ प्रकृति पटाकर और मम्यमिप. जोकर १११-१२ १-१०० उच्य प्रकृनिया जानना । सत्य प्रकृतियां-१४७, तोयंकर प्रति घटाकर जानना । सूचना-जिस जीव के ४थे गुण में तीर्थकर प्रकृति का बंध हो चुका है वह जीव उतरते समय में ३रे गुण स्थान में नहीं पाता ।
सल्या–पल्य के अमंस्थातवें भाग प्रमाण जीव जानना । क्षेत्र-ल्ब का प्रसंन्यानवां माग प्रमाण क्षेत्र जानना । स्पर्शन -१५ मर्ग का मिय गुग्ण स्थान र्याम देव नीमने नरक नक जाना है इसलिए ८ गज जानना । काल-नाना जीनों की मोक्षा प्रतमहतं मे नेकर पन्य के भय नवें भाग तक इस गुरण में हमकते है। एक जीव की योजा अन्त
मुंहन से प्रलं मुहून तक रह सकता है। ३२ अन्तर नाना जीवों को परेशा-एक ममप में पल्प के अपंगात भाग नक मंमार में कोई भी जीव इस मिण गुगा स्थान में नहीं पाया जाना
पोक जीब की अपेक्षा अन्न मुह मे लेकर देशोन अचं पुद्गल परावर्तन काल बीतने पर सादिमिथ्या हरिट के दुवारा मिथ गुग्ण म्यान
जरूर हो सकता है। ३३ जाति (योनि) २६ लाख जानना. नरक की , नाख, पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, देवति । म ख, मनुष्यगति के १४ लाख ये ०६ लाख जानना । १४ कुल---१३॥ लाख कोडि कुल जानना- नरक गति २५ नाव कोरिकुल, देवगति २६ लाख कौडि कुल, मनुष्य भत्ति १४ लास कोहि कर,
पंचेन्द्रिय तिर्यच १३।। नाल कोहि कुल, ये 1.1 ना कोडि कुन जानना ।