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अरइत
छड़ी जिसे बदमाश बैलों को चलाने के
लिये उनके पुट्ठों पर चुभाते हैं ।
प्रकार का वृत्त, मदार |
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मु० - प्रई लगाना - बलात् या हठात आगे चने को वाध्य करना, श्राग्रह करके
चलाना ।
उत्ते
रइ दना :- उसकाना, उभाड़ना, जित करना ।
संज्ञा, स्त्री० ( प्रान्ती० ) मथानी, रई, ( दे० ) ।
अरइल - वि० (दे० ) अड़ने वाला. अरई के लगाने पर चलने वाला । अरक - संज्ञा, पु० ( अ० ) भभके से खींचा जाने वाला किसी पदार्थ का रस, आसव, रप पीना ।
संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्क ) सूर्य, एक
अरक जवास पात बिन भयऊ
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"
रामा० ।
परकना - अ० क्रि० ( अनु० ) श्ररराकर गिरना, टकराना, फटना दरकना । (दे० ) मना करना, हरकना ( प्रान्ती ० ) । • कहैं बनवारी बादाहि के तखत पास, safar - दरकिलो- लोथनि सों थरकी " अरकना-वर कनाप्र० क्रि० ( अनु० ) इधर उधर करना, खीचातानी करना । अरकनाना - संधा, पु० ( ० ) पुदीना और fair मिला कर खींचा हुआ एक
प्रकार का श्राप |
प्रर कला - संज्ञा पु० (दे० ) मर्यादा,
मान ।
"
अरकान - संज्ञा, पु० (दे० ) प्रमुख राजकर्मचारी, सरदार मुखिया, नेता । " नेगी गये मिले श्रर काना - प० । अरकाटी - सज्ञा, पु० दे० ( अरकाट देश ) कुलियों को भरती करा के बाहर टापुओं मैं भेजने वाला । अरगजा-संज्ञा, पु० ( हि० अरग + जा ) केसर, चंदन, कपूर आदि सुगंधित पदार्थों
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के मिलाने सौरभीला पदार्थ ।
खर को कहा अरगजा लेपन स्वान नहाये
- सूर० ।
गंग " अरगजा -संज्ञा, पु० ( हि० अरगजा ) अरगजे का सा एक प्रकार का रंग । वि० अरगजे की सी सुगन्धि वाला । रगट - वि० ( हि० अलग ) पृथक. अलग निराला, भिन्न, विलग |
!
अरगट ही फानूस सी परगट, होति लखाय " । वि० । अरगनी - संज्ञा स्त्री० (दे० ) अलगनी. कपड़ों आदि के लटकाने के लिये बाँस या रस्सी जो घर में रहती है । अरगवानी - संज्ञा, पु० ( फा० ) लाल रंग, वि० लाल, या बंगनी, अरुण रंग का । अरगल - संज्ञा, पु० दे० (सं० अगल ब्याड़ा, किवाड़ बंद करने की लकड़ी गज । अरगला - सज्ञा, पु० ( स० अगल ) अर्गल. रोक, संयम ।
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अरघ
बना हुआ एक प्रकार का
अरगाना * - अ० क्रि० दे० ( हि० अलगाना) अलग करना या होना, पृथक करना, सनाय खींचना बैठना, चुपी साधना, मौन होना ।
चुपचाप
स० क्रि० अलग करना, छाँटना चुनना ।
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सूते सन मथनिया के ढिग बैठि रहे अरगाई - सूबे० ।
“झुकी रानि अब रहु अरगानी" १- रामा० । मु० - प्राणा गाना - चकित होना । " देस देस के नृपति देखि यह प्राण रहे अरगाई " -- सूत्रे० ।
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अरघ - संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्ध ) अर्ध्य, षोडशोपचारों में से पूजन का एक उपचार. हाथ धोने के लिये जल सम्मान प्रदर्शनार्थ गिराया जाने वाला जल । "अरव देइ थान बैठारे " ।
ara देइ परिकरमा कीन्ही " ।
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