Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
*पष्टमांग ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
पंजरुम्मिलिपव्य मणिकणग थुभियाए त्रियसिय सयपत्त पुंडरीए तिलयरयणद्धचंदच्चिए जाणामणिमय दामालंकि अताबासह तवणिजरुइलवालुयापत्थरे मुहासे सरिसरीय रूये पासादीए जाव पडिरूवे ॥ ८० ॥ एकंचणं महं भवणं करेइ अग खंभ सय सणिविट्ठ लीलट्ठियसाल भजियागं अब्भुगय सुकय वयरवेइया, तोरणेवरू रइय सालभंजिया, सुसिलिट्ठ विसिटुलट्ठ संद्विय पसत्थ वेरूलिय खंभ, णाणामणि झपाटेसे जयविजय करनेवाली विजय व वैजयंती नामक द्रजाओं फरक रही है, ऊंचा गगनतलको स्पर्श करनेवाले शिखरों हैं, जालियों के मध्य भाग में, अथवा ग्वाक्ष के अंतर में रत्नों के पंजर रहे हुवे हैं, चंद्रकांतादि मणि व सुवर्ण से जडित वृभिका है, इस प्रकार आठ प्रासादों में विकसित पाए हुए कमल मतिरूप व प्रतिबिम्ब से अंकित है, अर्ध चंद्राकार पगथिये हैं चंद्रकान्तादि मणि की माला से अलंकृत कीये हैं. आभ्यंतर व बाह्य भाग रसकोमल बनाया है, तप्त सुवर्ण के रंग जैसी वालु रेती बिछाई हुई है, प्रासादों का स्पर्श सुखकारी है कि सहित है. वे मासादा चित्त को प्रसन्न कर्ता है, अभिरूप व प्रतिरूप हैं। ॥ ८० ॥ और भी उन अवसादों के बीच मेघकदार के लिये एक बडा भवन कराया. उस में अनेक स्थंभ बनाये, अनेक प्रकार की लीला सहित पूतलीयों स्थापन की, वड भवन उन प्रामादों से बहुत ऊंचा व {सुंदर था, उस के बाहिर दोनों तरफ वेदिका थी, उस पर तोरन लगाये हुवे थे, अनेक प्रकार की श्रेणियों
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क्षिप्त (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन
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