Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
** पछङ्ग ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध
खरेव
लंबत मुडए पइ भमर राहुवण्णे णिरणुक्को से णिरणुता णिसंसतिते, निरणुक अहो एतदिट्ठी, एतधाराए गिद्धेव अभिसेतह्निच्छे, अग्गिमित्र सव्वभक्ती जलमित्र सव्वग्गाही, पुंछ के समुह व राहु ग्रह जैसा उस के शरीर का वर्ण था, वह निर्दय दया रहित था, उस को अकार्य में पश्चाताप कदापि नहीं होता था, वह दारुण अर्थात् रौद्र था, अन्य को भय उत्पन्न करने वाला था, विशंकित था अर्थात् शूरवीरपना से किसी कार्य को साधने में उस को शंका नहीं थी. अथवा नृशंसकर था. अनुकंपा रहिन था, सर्प समान एक दृष्टिला था अर्थात् हरन करनेकी वस्तु पर
उस की
दृष्टि स्थिर रहती थी. जैसे छुरी एक धारा ने चलती है वैसे ही वह एक धवाला था, अर्थात् जिस की चोटी करने की इच्छा की उसकी चारी किये बिना ही रहता था, वृद्धा लोभी होता हुवा जिस जन्तु पीछे होता है उसे लिये बिना नहीं कला है बैरन को देखा होवे उसे लिये बिना नहीं रहता था, जैसे अन को वैसे ही यह चोर तर वस्तु
भक्षण करने वाला था, पानी जैसे सब वस्तु प्रण करने वाला था, तीच वस्तु को ऊंच बनाने व ऊंच वस्तु को नीच बनाने में बडा युक्तितथा अन्य कोच में बड़ा मायावी था, निवड (गुप्त गंठिला )
१ निःसंशयिकः शीर्यतिशयादसाधाविवृतिकः पाठांतरे निसंते नृनरान् शंसति निति नृशंसः
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उद्धय
दारुणे
पइण्ण पइभते,
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486* घना सार्थ ग्रह का द्वारा अध्ययन
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