Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पजा
फरिहोदर अमणुन्ने वन्नेणं ४, से जहा नामए अहिमडेतिय जाव अमणामतराए तसेणं से जियमस्तू राया सबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-अहोणं साह ! इमे फ.रहादए अमणुण्यो वण्णेणं 8 से महा नामए अहिमडेतिव आव अमणामतराए चेव ॥ ततणं से सुबडी अमच्चे जाव तुसिणीए संचिट्ठति ॥ ततेणं से जियसत्तृ राया सुबई अमच्च दोच्चीि तपि एवं वयासी-अहोणं तंत्र ॥ ततेणं सुबुद्धी अमच्चे जियसस्तुणारण्णा दोच्चपि तच्चपि एवं वुत्तेसमाणे एवं क्यासी-नो खलु सामी ! अम्हं एयंसि फारहोदगंसि कइ विम्हए, एवं खलु सामी ! सुब्भिसह वि पं.ग्गला
दुभिसत्ताए परिणमंति तंचव पोगवीससा परिणया वियणं सामी ! पं.ग्गला वामिन् ! जैसे आप कहते हो वैसे ही है. इस खाइ का पानी अमनोज्ञ गंधाला यात् स के मुडदे जैमा यावत् अपनामता है. उन सपर जिनशत्रु राजाने सवुदि प्रधान को कहा कि अहा मुबुद्ध ! इस खाइ का पानी जैसे सर्प के मुडदे की गंध होवे वैमा अमनोज गंधाला यावत् अमनामतर है. उस समय भी मुबुद्धि प्रधान यवत् मौन रहा, जब राजाने दो तीन बार ऐसा कहा तप उसने कहा कि अहो स्वामिन् ! म खाइके पानी में कच्छ भी आश्चर्य है. क्यों कि मुरभिशन्दवाले पुगल दुरभिगंधवाले होते हैं यावत् पुद्गलों प्रयोग वीससा.
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक
.प्रकाशकराजावडादर काला हव्दवमहायजीवाहासमादमी
अर्थ
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