Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
अर्थ
षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा की प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
तर किंमगपुण उवदिसित्तएवाआयरियत्तएवा ॥ अम्हेणं तत्र देवाणुप्पिए! विवित्तं केवलि पणन्तं धम्मं परिकहज्जामो ॥ ३० ॥ ततेणं सा पोहिला ताओ अज्जाओ एवं वयासी इच्छामिण अजाओ ! तुम्हं अंतिए के लिपन्नत्तं धम्मं निममित्तए ॥ ततेणं ताओ अजाओ पोहिलाते विचितं धम्मं परिकहेति ॥ ३१ ॥ ततेनं सा पोहिला धम्मं सोच्चा मिसम्म हट्ट तुट्ठा एवं वयासी- सद्दहामिणं अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं पत्तिए जाब से जहेयं तुम्भे वयह, इच्छामिणं अहं तुष्भं अंतिए पंचाणुव्त्रयं जाव गिहिधम्मं पडिजिए || अहासुहं मा पडिबंधं करह ततेणं सा पाहिला तेसिं अजाणं अंतिए पंचाणुव्वतियं जाव धम्मं पडिवज्जति ताओ अज्जाओ वंदति णमंसति
कल्पता नहीं है तो उपदेशन देना व आचरण करना तो कहां रहा. अहो देवानुप्रिये ! हम तुम को केबलि (प्ररूपित विचित्र प्रकारका धर्मोपदेश कहेंगे ॥ ३० ॥ तब पोहिला उन आर्याओं कहने लगा अहा आर्याओ ! आप की पास विदिष प्रकारका केवली प्ररूपित धर्म श्रवण करना चाहती हूं तत्र उनोंने पोट्टिला को विचित्र प्रकार { का केवली परूपित धर्म कहा ॥ ३१ ॥ उसकी पास से धर्म सुनकर पोट्टेला हष्टतुष्ट हुई और ऐसा कहा अहो आर्याओं! मैं निग्रन्थ के प्रवचनकी श्रद्धा करती हूं यावत् जैसे आप कहते हो वैसा ही मैं आपकी पास पांच अनुव्रत रूप यावत् धर्म अंगीकार करती हूं. यों कहकर उन को वंदना नमस्कार कर विर्जित
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तेतली पुत्र का चउद्रहवा अध्ययन
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