Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 793
________________ 42 पांग ज्ञाताधकथा का द्वितीय श्रुतस्तन्ध Rite सुभगावियं ॥ ॥ पुण्णा बहुपुष्णियाचेव; उत्तमा भारियाविय ॥ पउमा वसुमतीचेव, क गगा कगगप्पभा ॥ २ ॥ वडिगा केउमती चेव; वइरसेणा रइप्पिया; रोहिणी नयमिपा चेत्र हरी पुष्पवतीविय ॥ ३ ॥ भुयगा भयगवती चेव, महाकच्छा 9૮૦ फुड इय, सुघोसा विमला चव सुस्ससराय सरस्सती ॥ ४॥ उक्खेओ व पढमज्झयणस्म; एवं खलु जंबु!-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे समोसरणं जावं परिसा पज्जुबासति ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं कमलादेवी कमलाए रायहाणीए कमलवासिए भवणे, कमलं सीहासणंसि, सेसं जहा कालीए, सहेब; णवरं पुव्वभयो. का ११ उत्तमा, १२ भारिका, १३ पना, १४ वसुमती १५ कनका १६ कनक प्रभा, १७ वर्तसका १८ केतुमती ११ वश पेना २० रतिप्रिया २१ रोहिनी २२ नामिका २३ होरी २४ पुष्पवती २६ भुगा २६4 भुनगवती २७ महाकच्छा २८ स्फुटा २९ मुधोपा ३० विमला ३१ सुस्परा और ३२ सरस्वती. इम में से प्रथा अध्ययन का कथन करते हैं. अहो जम्नू ! उस काल उस समय में कमला देवी कमला राज्य धनी में कमलावतंसक भान में कपल हासन पर अवधिज्ञान मे बगैरह काली देवी जैसे जानना. पूर्व-13 भर का कथन. नागपुर नगर, सहस्रम्प वन उद्यान, कमल गाथा पति, उसकी कमल श्री भार्या, कमला पुत्री, पवे गय सामी की पास दीक्षा अंगोकार की, काल पिशाच के इन्द्र की अग्रपहिर्ष पो उत्पन्न हुई. स्थिति । पांचा वर्ग 984 - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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