Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 795
________________ . M शंशाताधर्मकथा द्वितीय श्रतस्कन्ध 41 सत्तमरस वास्स उक्खेवओ एवं खलु जंबु ! जाव चत्तारि अज्झयणा पण्णता, तंजहा-सूरप्पभा आयचा, अचिमाली पभंकरा ॥ पढमज्झयणस्स उक्खेवओएवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं नाव परिसा पज्जुबासति ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरप्पभादेवी सूरंसिविमाणसि सरप्पभं सीहासणसि, सेसं जहा कालीए तहा पवरं पुख्वभवो-अरक्खरीए नयरीए सूरप्पभस्स गाहावइस्स सरसिरीए भारियाए सरप्पभादारिया, सूरस्स अग्गमहिसी, ठिती अडपलिओवमं पंचर्हि वाससएहिं अन्भहियं, सेसं जहा कालीए सातवा वर्ग कहते हैं-सात वर्ग में चार अध्ययन को है जिनके नाम- सूरममा, २ मातपा, E३ अर्चीमालीनी और ४ प्रषंकरा. इन में पाहेला अध्ययन कहते है-उस काल उस समय में राजगृम। नगर के गुणशीर उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे परिषदा पंदना करने को निकली यावत् परिषदा गर्युपासना करने लगी. उस काल उस समय में सूरमभा देवी सर्प विमान में मरममा सिंहासन पर शेष सब काली देवी जैसे कहना. इसका पूर्वमन, अरक्सुरी नगरी, सूरमम गाथापति, उसकी सूर श्री भार्या व सूरममा कन्या थी. वह सूर्य देवेन्द्र की अग्रमहिषीपने उत्पन्न हुई. इस की स्थिति बाधा पल्योपम व पांच सो वर्ष अधिक की जाननाः शेष सब काली को जानना. पतीनों अपहिषियों। mmmmu er सातवा वर्ग alth Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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