Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 796
________________ + सुत्र ૭૮૮ एवं सेसाओवि. सबाओ अरक्खुरीए णयरीए ॥ सत्तमो वग्गो सम्मत्तो ॥ ५ ॥ ४॥ अट्ठमस्म उक्खेवओ-एवं खलु जंबु जाव चत्तारि अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा. चंदप्पभा दोसिणाभा आचमाली पभंकररा।। ॥पढमज्झयणस्स उक्खेवओ-एवं खलु जंबु! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पज्जुगसति ॥ तेणं कालेगं तेणं समएणं चंदप्पभादेवी चंदप्पभंसि विमाणंसि चंदप्पभंसि सीहासणंति सेसं जहा कालीए णवरं पुवभवो-महुराए जयरीए चंडवडिसए उज्जाणे, चंदप्पभे गाहावती, चंदसिरि भारिया,चंदप्पभादारिया, चंदस्सअग्गमहिसी ठिती अहपलि ओक्मं अखुरी नगरी में हुई। यह सातवा वर्ग संपुर्ण हुआ ॥ ७॥ .. . ..... अब आठवा वर्ग कहते हैं-अहो जम्बु! आठवे वर्ग के चार अध्ययन कहे हैं जिनके नाम-चंद्रप्रभा, दोषी नामा, अमालीनी और प्रभंकरा. इन में से प्रथम अध्ययन का अर्थ कहते हैं. उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत् परिषदा पर्युपासना करने लगी. उस काल उस समय में चंद्र प्रभा देवी चंद्र प्रभा सिंहासन पर अवधिज्ञान से जम्बूद्वीप का अवलोकन करती थी. शेष सब काली जेसा जानना. पूर्व भव में} 17मथुरा नमरी, मुंडावतंसक उधान, चंद्रप्रभ गाथापति, चंद्र श्री भार्या व इन की चंद्रप्रभा कन्या, चंद्र"। । अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्रा'अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-रामाबहादुर साला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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