Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 792
________________ ऋषिजी । सीहासर्णसि जहा कालीए तहा नवरं पुबमवे-चंपाए पुण्णभद्दए चेइए, रुयगाहावइ रुपगंसिरी भारिया, रुयादारिया, सैसं तहेव णवर-भूयाणंदे अग्गमहिसित्ताए उववाओ, देसूर्ण पलिओवमंठिती,गिक्खेवओएवं सुरुया,विख्या विरुयेसा,विरुयगाएवति,विरुयकतावि, रुयप्पहावि, इच्चयाओचेव उत्तरिलाणं इंदाणं भाणियवाओ; जाव महा घोसस्स णिक्खेवओ ॥ चउत्थं बग्गरस ॥ ४ ॥ ५४ ॥ पंचम वग्गरस उखवओ-एवं खलु जंबु ! जाव बत्तीसं अज्झयणा पण्णता, तंगहा १. कमला, कमलप्पभा चेव उप्पलाए सुदसणा रूववती, बहुरूवा; सुरूवा, भव का कथन चंपा नगरी, पूर्णभद्र चैत्य, कच गाय पति रुचग श्री भायां, और उस की रुचा कन्या शेष सब वैसे ही कहना. यह भूमानेन्द्र की अग्रमहिषी हुई. इस की स्थिति पस्योपम से कुछ कम जानना. ऐसे ही सुरूचा, विचा, विरूतंसा, विरूचावती, और विरुचप्रमाय इन पांचों का रूचादेवी जैसा जानना ऐसे ही उत्तर दिशा के सब इन्द्रों का जानना. यह सब ५४ अध्ययन होते हैं. यह चौथा वर्ग दुवा॥४॥ 23 अब पांचवा वर्ग का उक्षेपा कहते हैं. इस के बत्तीस अध्ययन कहे हैं. जिन के माम १ कमला, २ कमल प्रभा, ३ उत्पला, ४ मुदर्शना, ५ रूपवती, ६ वारूपा, ७ सुरूपा, ८ सुभगा ९ पूर्णा, १० बहुपणि बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक : •प्रकाशक-राजाबहादुर काला मुखदेवसहायनी चालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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