Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अजाओ सुकुमालियं एवं-वयासी अम्हेण अजो समणीआ णिग्गंथ ओइरियासमियाओ जाव बंभचारिणीआ, णो खलु अम्हं कप्पति बहिया गामस्मवा जाव सन्निवे सस्मवा जाब विहरित्तए, कप्पतिणं अंतोउवासगस्स बत्ति परिक्खित्तस्स संघाडि वाहयाएण समतलबातियाए आयावेत्तए ॥७५॥ ततेणं सासुकुमालिया गोवालियाए अजाए एयमटुं णो सद्दहइ णो पत्तियइ णो रोएइ एयमटुं असदहमाणे ३ मभूमि भागस्स उजाणस्म अदरसामंते छट्रेछट्रेण जाव विहरइ ।। ७६ ॥ तत्थणं चपाए णयरीए ललियणाम गोट्ठी परिवसति णरवइदिग्ण वियारा अम्माप्पइ णिययणिप्पवासा
18 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अपोळ क ऋषिजी
११ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुग्वदेवमहायजी पालाप्रसादजी
हूं. तब गोवालिका आनि उत्तर दिया अपन साधियों हैं. इर्या समिति वाली यावत् गुप्त ब्रह्मचारिनियों हैं.. अपन का ग्राम अथवा सन्निवश से बाहिर विचरना व आतापना लेना नहीं कल्पता है परंतु अपन को उपाश्रय में चारो तरफ से ढके हुवे स्थान में साधायों के परिवार से दोनों पांव पृथ्वीपर है रखकर आतापना लना कल्पना है. ॥ ७५ ।। सुकुमालिकाने गोवालिका आर्या के वचन की श्रद्धा प्रनीति व रूचि का नहीं व इस तरह श्रद्धा प्रतीति व रुचि नहीं करते हवे सुभ मभाग उद्यान की पास निरंतर छठ २ का तप करती हुई बिचरती थी. ॥ ७६ ॥ उस चंपा नगरी में ललित गोष्टि [ कंडा करने वाले लोगों का समुह रहते थे. इन लोगों को सजाने भी क्रीडा करने की आज्ञा दी थी और मात पिता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org