Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
8
जवसायंवा वरेहिसि सेणं तव भत्तारे भविस्सति तिकटु,ताहिं इट्टाहिं जाव आसासेति पडि विसजेति ॥ ९३ ॥ ततेणं से दुवएराया दुयं सद्दावेति दुयंसहावेत्ता एवं वयासी गच्छणं तुमे देवाणुप्पिया ! वारवतिं गयरिं तस्थणं तुम्हें कण्हं वासुदेवं समुद्द विजय पामोक्ख दस दसारे,बलदेवे पामोक्खे पंचमहावीरे,उग्गण पामक्खि सोलसह रायसहस्से पज्जुन्न पामोक्खाओ अदुवाओ कुमार कोडीओ,सब पामोक्खाओसद्रिं दद्दत साहस्सीओ, वीरसेण पामोक्खाओ एक्कवीस वीरपुरिस साहस्सीओ, महसेण पामक्खिाओ छप्पन्नं चेव बलवग साहस्सीओ, अग्नेय बहवे राईसर तलवर माडंबिय कोडुबिय इब्भ सेट्टि
सेणावति सत्थवाह पभिइओ करयल परिगाहिय दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि Pष्ट यावत् बल्लभशष्दों में आश्वामन देकर विसोजत की. ॥१३॥तब द्रुपद राजाने दूको बोलाकर कहा कि | ५५ नुक्ष्यि ! तुम द्वारिका नगरी में जाओ, वहां कृष्ण वासुदेव. समुद्र विजय प्रमुख द। दशार, बलदेव
प्रमुख पांच महावीर, उग्रसेन प्रमुख सोलह हजर राजा, प्रद्युम्न कगार प्रमुख स हे तीनकोड कुगर, शंबई। प्रमुख साठ हजार दुईन कुमार, वीरसन प्रमुख इक्कोम हजार वीर पुरुषों, पहासे प्रमुख छप्पन्न हजार
बालचंत पुरुषों का समुह, और अन्य बहुत राजेश्वर, तलवर, माडंधिय, कौटुबिक, इष्ध, श्रष्टि, सेनापति | सार्थवाह, वगैरह को दशोनच एकत्रि कर अर्थात् दोनों हाथ जोडकर मस्तक से आवर्त देकर जय व विजय ।
3. पशंङ्ग ज्ञाताधर्षकथा का प्रथम श्रुसमन्ध 43
द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
म
Jain Education International
www.jainelibrary.org
For Personal & Private Use Only