Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
4
यस्स अणगारस्स अण्णदातेहिं अंतेहिय पंतेहिय जहा सेलग जाव दाहनकंतिएयावि विहरति ॥ ११॥ ततेणं ते थेरा अन्नयाकयाइ जेणेव पुंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छइ २ चा लिणीवणे समोसढा पुंडरीए राषा णिग्गए धम्म सुणेति॥ १२ ॥ ततेणं से पुंडरीए राया धम्मं सोचा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ२ त्ता कंडरीयं वंदति गमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सवावाहं सरायं पासति, पासित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ रत्ता थेरे भगवते वंदइ णमंसइ, वंदिता नमंसिता एवं क्यासी-अहण्णं भंते ! कंडरीयस्स
अणगारस्स महापववित्तेहिं उसहभेसज्जेहिं जाव तेइच्छं आउंटामि, तं तुब्भेणं मईआहार से शलग राजा के जैसे शरीर में वेदना हुई यावत् दाइजर होगण ॥ ११॥ एकदा स्थविर
पुनरीकिनी नगरी के नलिनी उद्यान में पधारे. पुंडरीक नीकला व धर्म सुना ॥१२॥ पुंडराक राजा धर्म मुनकर कुंडरीक अनगार की पास बाये. उन को वंदना नमस्कार करके उनके शरीर को व्याधि सहित देखा. फोर स्थविर भगवंत को पास आकर उन को वंदना नमस्कार करके कहने लगे कि वो भगवन् ! कुंडरीक अनगार.की आपकी प्रवृत्ति अनुसार औषध भैषज्य से यावत् चिकित्सा
पाताधर्षकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 1
- पुंडरीक कंडरीक का उन्नीसवा अध्ययन 44
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org