Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 760
________________ सूत्र अर्थ 4 अनुवादक- वारह्मचारी मुनि श्री अमोलखऋषिजी Jain Education International विरस सीयं लक्खं पाण भोयणं आहरियस्स समाणस्स पुत्ररत्तावरतकाल समयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स से आहारे णो समं परिणमति ॥ ततेणं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्म सरीरगंसि वेदना पाउब्भूया उजला जात्र दुरहियासा पित्तज्जर परिगय सरीरे दाहकतीए विहरति ॥ २६ ॥ ततेणं से पुंडरीए अणगारे अत्थामे अबले अबीरिए अपुरिसक्कारपरिक्कम करयल जाब एवं वयास्त्री - णमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं नात्र संपत्ताणं नमोत्थु थराणं भगवंताणं ममधम्मायरियाणं धम्मोवएसयाणं पुत्रं प्रियणं मए थेराणं अतिए सच्चे पाणातिवाए पञ्चखाए जाव मिच्छादंसणसले पच्चक्खाए जाब आलोइय पडिक्कते कालमासे कालंकिच्चा सव्व अरस विरसवाला आहार पानी समय वे समय मीलने से व पूर्व रात्रि में धर्म जागरणा करने से वह आहार सम्यक् प्रकार से परिणमा नहीं. इस से उन के शरीर में वेदना प्रगट हुई. पित्तज्वरबाला शरीर महित यावत् विचरने लगा || २६ || अब पुंडरीक अनगार बल वीर्य पुरुष स्कार व पराक्रम रहित होने से हाथ जोडकर ऐसा वोले कि अरिहंत भगवंत की जो मोक्ष को प्राप्त हुए हैं उन को नमस्कार होवो, मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक स्थविर भगत को मेरा नमस्कार होवो, पहिले मैंने स्थविरों की पास से धर्म सुनकर प्राणातिपात का यावत् मिथ्या दर्शन शल्य का प्रत्याख्यान किया था. यावत् आलोचना प्रतिक्रमण - For Personal & Private Use Only १. प्रकाशक-राजा बहादुर लाला. सुखदेवमहायजी स्वास्यमसादमी ० ७५२ www.jainelibrary.org

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