Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 773
________________ अर्थ -पष्टांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का द्वितीय तस्कन्य 43+ अंबमालवणे समोसढे, परिसा णिग्गया जात्र पज्जुवासति ॥ १२ ॥ ततेणं सा . कालीदारिया इमीसे कहाए लडट्ठा समाणी हट्ठ तुट्ठा जाव हियया जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ २ ता करयल जाव एवं वयासी एवं खलु अम्मयाओ पासे अरहा पुरसादाणीए आइगरे जाव विहरति, तं इच्छामिणं अम्मयातो तुम्मेहिं अम्भ गुणाया समाणी पासरस अरहा पुरिसादाणीयरस पायबंदिया गमित्तए ? अहासुहं देवांणुपिया ! मापडेिबंधं करेह ॥ ततेणं कालीदारिया अम्मापिताहिं अब्भणुन्नाया संमाणीहट्ठा जाव हियया हाया कयबलिकम्मा कय कोउयमंगल पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाति मंगलाइ वत्थाइ पत्रर परिहिया अप्पमहग्या भरणा लंकिय सरीरा चेडिया चक्कवाल परिकिण्णा सातो सना करने लगी ॥ १२ ॥ उस समय में काली कुमारी पार्श्वनाथ स्वामी के पधारने की बात सुनकर हृष्ट { तुष्ट हुई और जहां अपने मात पिता थे वहां आई. उन को हाथ जोडकर बोली- अहो मातपिता ! धर्म की आदि करनेवाले पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामी यावत् विचर रहे हैं. इस से आप की अनुज्ञा होवे सो { पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामी के पांच वंदन करने को मैं जाना चाहती हूं. उनोंने कहा अहो देवा{ नुनिय! जैसे सुख होवे वैसा करो. मात पिता की अनुज्ञा होने से काली कुपारी हृष्ट तुष्ट हुई. उसने स्नान किया, कुल्ले किये, तिल पासादिक किये, शुद्ध सभा में प्रवेश करने योग्य मंगलिक बनों परि Jain Education International For Personal & Private Use Only पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन ७६५ www.jainelibrary.org

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