Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 777
________________ सूत्र अर्थ षष्टां ज्ञातावकत्था का द्वितीय श्रुतस्कन्ध 4+ संबंधि परियणस्स पुरतो कालिंदारियं सेयापीएहिं कलसेर्हि व्हावेतिरता सबालंकारं विभूतियं करेति रत्ता पारस सहस्तबाहिर्लि सीयं दुरुहति २त्ता मित्तनाइ जियग सयण संबंधि परियाणेण सार्द्धं संपरिवुडे सन्विदीए जाव रवेण आमलंकम्पनयरिं मज्झं • मज्झेणं निगच्छति णिग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए तेणेव उवागच्छइ र सा छादिए तित्थगराइए पासति २ ता सीयंठवेइ २ चा कालिं दारियं सीयाती पचोरुहति ॥ १७ ॥ ततेणं कालिं दारियं अम्मापियरो पुरओ काओ जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेच उत्रागच्छइ २ ता वंइइ नमसइ २त्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुपिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा कंता नाव किमंग पुण श्वेत पीत कलशों में स्नान कराया, यावत् सब अलंकार से विभूषित की. फोर सहस्रपुरुष {पर बैठकर मित्र ज्ञाति स्वजन संबंधि जनोंके परिवार से सब ऋद्धि यावत् अमलकम्पा नगरी की मध्य बीच में निकल कर अंबशाल वन में आइ. तीर्थंकरों के छत्रादि अतिशय देखकर शीषिका खडी. की. और कॉली कुमारी उम में से नीचे उतरी || १७ || काली कुमारीका के मातपिता उन को आगे करके पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ अरिहंत की पस आये, उनको वंदना नमस्कार कर कहने लगे कि अ देवानुमेय ! हमारी यह काली नामक पुत्री के या देवा शीव का उसका दर्शन भी है. For Personal & Private Use Only Jain Education International 48 पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन ७६९ (www.jainelibrary.org

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