Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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श्री अमांककपिजी
वियणं ठाणंवा सेजंवा णितीहियंका चेएइ तं पुन्नामेव अब्भुक्खेत्ता ततोपच्छा आसायतिका सयतिवा ॥ २३ ॥ ततेणं सा पुषचूला अजा कलिंअजं एवं वयासीणो खलु कप्पति देवाणुप्पिया ! समणीणं जिग्गंधीणं सरीरपाउसियाणं होत्थए, तुमं चणं देवाणुप्पिए ! सरीर पाउसिया जाया अभिक्खणं २ हत्ये धोवेति जाव आसयाहि, तं तुमं देवाणुप्पिए । एयरस ठाणस्स आलोएहि जाव पायछित्तं पडिवजेहि॥ततेणं सा काली अजा पुप्फचूलाए अजाए एयमटुं नो आढाति जाव तुसिणीया संचिट्ठति ॥ २४ ॥ ततेणं ताओ पुप्फलामो अजाओ कालिंअजं अभिक्खणं २
होलेति जिंदति खिसंति गरहति अवमण्णति अभिक्खणं. २ एयमटुं निवारेति धोने लगी, मुख धोने लगी, स्तनतिर धोने लगी, कक्षातर धोने लगी, गुह्मांतर धोने लगी. और जहां २ स्वाध्याय, ध्यान व कायोत्मर्ग करती थी वहां २ पहिले पानी सींचन कर पीछे बैठती व मोती थी। ॥ २३॥ पुष्पला आर्याने काली आर्या से कहा कि अहो देवानमिय! अपन साध्वियों हैं. अपन शरीर की सभूषा करना नहीं कल्पता है. तुम शरीर की श्रुषा करने लगी हो हाथ धोने लगी हो यावत् पानीका सींचन कर बैठती सोती हो इसलिये तुम को इस की आलोचना कर उस का पायाच्छत्त लेनाई चाहिये. काली आर्याने पुष्पचूला आर्या की इस बात को अच्छी जानी नहीं यावत् मौन रही ॥ २४ ॥ पुष्पचका भार्या काली भार्या की वारंवार हीलना निंदा व खिसना करने लगी और इस बात नहीं।
.पाचकराजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
मर्थ
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