Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 778
________________ rammmmmmmmmmmmmm पासणयाए एसणं देवाणुप्पिया ! संसार भउठिवग्गा इच्छइ देवाणुपियाणं अंतिए । मुंडे भविताणं जाव पव्वइए एयणं " देवाणुप्पियाण सिसणि भिक्खं दलयामो, . पडिग्छतु देवाणुप्पिया .! सिस्सणि भिक्खं ॥ अहासुहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंध करेह ॥ ततेणं सा काली कुमारी पास अरहं वदति. नमसति वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमति २ ता सथमेआभरणमल्लालंकारं मुयति २ सा सयमेव लोयंकरेति २ ता जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पासं अरहं तिक्खुचो वंदति ममंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-आलियह संसार भय से उद्विग्न बनी हुई है और आप की पास मुंडित बनकर दीक्षा अंगीकार करना चाहती है अहो देवानुपिय! हम इस की आप को शिषनी भिक्षा देते हैं. अहो देवानुप्रिय! आप या शिष्यनी मिक्षा ग्रहण करो. भगवानने उत्तर दिया कि महो देवानप्रिय ! तुम को जैसे मुख होबे वैसे करो, विलम्ब मत करो. तब वह काली कुमारीका पार्श्वनाथ स्वामी को वंदना नमस्कार कर ईशानकून में गई.। भाभरण अलंकार वगैरह स्वतःने निकाल दिये, स्वयमेव लोच किया, और पार्श्वनाथ अरिहंत की पास , 15 आई. उन को वंदना नमस्कार करके बोली, अहो भगवन् ! यह लोक भालिप्त है यों सब देवानंदा जैसे है। 4. अनुवादक-पालब्रह्मचारीमुनी श्रीअमोलक ऋषिजी+ पाशकामाबहादुर लाला मुखदषपहायजी चाकापसादिनी. अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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