Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 772
________________ 4- अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी अड्डे जाव अपरिभूए ॥ तस्सणं कालस्स गाहावइस्स कालसिरीणाम भारिया होस्था । सुकुमाला पाणिपाया जाव सुरूवा ॥ तस्सणं कालगस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए असया कालीणामं दारिया होत्था वडा वडकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडिय पुयत्थणी णिविन्नवरा वर परिवजियावि होत्था ॥१॥ तेणं कालेणं तेणं. समएणं पासेअरहा पुरिसादाणीए आइकरे जहा वडमाण सामी, गवरं लवहत्थुरसेहे, सोलसहिं समणसाहस्सिहिं अट्ठतीसाए अजिया साहस्सीहिं सडिं संपरिबुड़े जाव पति रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभूत था. उस गाथापति को काल श्री नामक भार्या थी वह सुकोमल हाथ पांव वाली यावत् सुरूपा थी. उस काल गाथापति को काल श्री भार्या से काली नामक कन्या हुई थी वह कुमारिका-यौवन. अवस्थाको माई तथापि वृद्ध देखाती थी, वृद्धावस्था जैसे शरीरमें. जीर्णता होगईथी, काया व सनस्थित पडगयेथे, और वरसे परिवर्जित थी अर्थात् उसका विवाह हुआ ही नहीं। था. ॥ ११॥ उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामी , वर्धमान स्वामी समान विचरते थे. उन के शरीर की अवगाहना ना हाथ की थी. वे सोलह हजार साधु. अडतीस. हजार साधी की साथ यावत् परवरे हुवे अंबशाल बन में पधारे. परिपदा नीकली यावत् पर्युपा-का .५काशाशजाबहादुर छालामुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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