Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मत्र
अर्थ
4- अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
ती कालीए देवीए इमेयारूत्रे जात्र समुपज्जित्था, - सेयं खलु से समणे भग महावीरं वंदति नम॑सति वंदित्ता नमसित्ता जाव पज्जुवासितए त्तिकद्दु, एवं संपे २ भिओए देवे सदावेइ २त्ता एवं वयासी एवं खलु देवाणुपिया ! समणे भगवं महावीरे एवं जहा सूरियामा तहेत्र आणत्तियं देइ जात्र दिव् सुरवराभिगमणजोग्गं करेह २ ता जाव पञ्चविण ॥ तेवि तहेव करेत्ता जाव पचविणंति णवरं जोयण सहस्स विच्छिण्णं जाणं सेसं तहेव ॥ तत्र नामगोयं साह लव नविहिं उवदसेइ जात्र पडिगया ॥ ८ ॥ संतेति भगवं गोयमे स्वामी को उन की पास जाकर वंदना नमस्कार कर यावत् पर्युपासना करना मुझे श्रेय है. यों कर आभियोगिक देवों को बोलाये और कहा कि श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में {राजगृही नगरीके गुणशील उद्यान में यथाप्रतिरूप अवग्रह याचकर यावत् विचर रहे हैं वगैरह सब सूर्याभ देव जैसे आज्ञा दी. यावत् दीव्य देवताओं के गमन योग्य विमान बनावो. और इतना करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. उनोंने भी वैसे ही करके आज्ञा पीछी दी. विशेष में एक हजार यांजन का चौडा विमान बनाया. नाम गोत्र वगैरह कहे सब वैसे ही जानना और सूर्याभ देव जैसे नाटक बताकर पीछी गई ॥ ८ ॥ गौतम
विचार
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● प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेव सहाय की ज्वालाप्रसादजी ●
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