Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 769
________________ सूत्र अर्थ + पांद्र ज्ञानाधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कन्ध गच्छति २ता मंजाणु अंचति २ ता दाहिणं जाणुं धरणियलंसि निहद्दु तिक्खतो मुद्धाणं धरणियलंसि निसोयइ २ चा इसि पच्चुण्णमइ २ ता. कडय तुडिय थभियातो भुयाओ साहरति २ ता करयल जाव कट्टु एवं वयासी - णमोत्थुनं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, णमोत्थुणं समजस्म भगवओ महावीररस संपाविकामस्म बंदामिणं भगवंतं तत्थगई इहगओ पासओमे भगवं महावीरे तत्थगए इयं चिक बंदति नमसति, वंदित्ता नमसित्ता सिंहासणवरांस पुरत्थामिमुही निसण्णा जाव समगे ॥ ७ ॥ ततेणं [ रखकर मस्तक को तीनवार पृथ्वीतलपर लगाकर जमीन किंचित् ऊंची हुई कंडे, कंकण व तुडित से {स्तमित भुजाओं ऊंची करके हाथ जोडकर ऐसा बोली अरिहंत भगवंत यावत् मोक्ष को प्रस हुने उन को { नमस्कार होवो और जो मोक्ष के कामी हैं. वैसे श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को मेरा नमस्कार होवो, मैं यहां रही हुई तीर्थंकर भगवंत को नमस्कार करती हूं. और वहां रहे हुई श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यहां रही हुई मुझे देखते हैं. यों करके उन को वंदना नमस्कार कर सिंहासन पर पूर्व दिशा की तरफ मुख रखकर बैठो ॥ ७ ॥ उत काली देवी को ऐसा अध्यवसाय हुआ कि श्रमण भगत महावीर Jain Education International For Personal & Private Use Only +++-- पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन ६१ www.jainelibrary.org

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