Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 767
________________ 48 अझयणा पण्णता तंजहा-१काली, २ राती, ३ रयणी, ४ विज्जु, ५ मेहा ॥ जइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गरस पंच अज्झयणा षण्णत्ता पढमस्सणं भंते । अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्रे पन्नते?॥ एवं खलु जंबू? तेणं कालेणं तेणंसमएणं रायगिह णयरे गुणसिलर चेहए, सेणिएराया, चेल्लणादेवी, सामी सामासरिए, परिसा निग्गया, जाव परिसा पज्जुवा सति ॥ ६ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचचाए रापहाणीए काल वडिंसगभवणे कालसिंहासणंसि चउहिं सामाणिय माहसीहिं चउहिं महारियाहि सपरिवाराहि, तिहिंपरिसाहिं, सत्चहिं अणिएहिं, सत्तहिं अणियाहिवईहिं, सोलसहिं अर्थ | स्वामीने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं जिन के नाम-१ काली २ राई ३ रजनि ४ विद्युत और ५ मेघा. श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन कहे हैं उन में से प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृहे नगर था, गुणशील उद्यान था, श्रेणिक राजा था. उसको चलाणा सणी थी. श्री श्रमण मंगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा वंदन 3करने को नीकली यावत् परिषदा पर्युपासना करने लगी ॥ ६ ॥ उस काल 'उस समय में काली देवी चपर चंचा राज्यधानी में काल:ब्रांसक विमान में चार हजार सामानिकदेव के परिवार सहित चार महतरिकादेवी) *पष्टाङ्गज्ञाताधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कन्ध 41 पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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