Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 766
________________ - wwwwwwwwwwww अनुवादक- ब्रह्मचारीमान श्री अमोल ऋषिजी ॥३॥उत्तरिलाणं असुरिंदवजियाणं भवणवांसि इंदाणं अगमहिसाणं च उत्थे व॥४॥ दाहिणिल्लाणं वाणमंतरराणं इंदाणं. अग्गमहिंसीणं पंचमेवग्गे ॥ ५॥ उत्तरिलाणं वाणमंतराणं इंदाणं अगमहिसाणं छट्टेवग्गे ॥ ६॥ चंदरस अग्गमहिसीण मत्तमेवग्गे ॥ ७ ॥ सूरस्सअग्गमहिसीणं अट्रमेवग्गं ॥८॥ सरसअग्गमहिसीणं गवमेवम्गे ॥॥९॥ ईसाणस्स अग्गर्माहसीणं दसमे वग्गे ॥ १० ॥ ५ ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं दसवग्गा पण्णत्ता, पढमस्सणं भंते ! वारसणं समजेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पन्नत्ते ? ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्त बग्गस्स पच तीसरा वर्ग, ४ असुरेन्द्र छोडकर उत्तर दिशा के भवनवासी इन्द्रों की अग्रमहिपियों का चौथा वर्ग, १५ दक्षिण दिशी के वाणव्यंतर के इन्द्रों की अग्रपहिषियों का पात्रमा वर्ग, ६ उत्तर दिशा के वाणव्यंतर के इन्द्रों की अग्रपहिषियों का छट्ठा वर्ग, ७ चंद्र की अंग्रपहिषियों का सातवा वर्ग ८ सूर्य की अग्रपहिषियों का आठवा वर्ग ९ शक्रेन्द्र की अग्रपहिषियों का नवा वर्ग और १० ईशानेन्द्र की अग्रमहिषयों का दशवा वर्ग है ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने यावत् ज्ञाता धर्म कथा के सदश वर्ग कहे है. उप्स में से प्रथम वर्ग का क्या अर्थ कहा ? अहो जम्बू ! श्री श्रपण भगवंत महावीर • पक शक-राजाबहादुर लाला. मुखदेवमहायजीज्वालाप्रमादजी अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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