Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
७५७
का प्रथम श्रुतसप me
॥१८॥ ततेणं तस्स पंडीयरस रणो अम्माघाती जेणेव आसोगवणिया तेणेव उवाग छह २त्ता कंडरीय अणगारं असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयांस आहयमणसंकप्पं जाव झियाएमागं पासति पासित्ता जेणेव पुंडरीएराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता पोडरीयंरायं एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! तव भाउए कडरीएअणगारे आसोगवाणियाए असोगवरपायवस्स अहे पुढवि सिलापट्टए
ओहयमण जाव झियायति ॥ १९॥ ततेणं से पोंडरीएराया अम्माधातीए एयमटुं सोचा जिसम्म तहेव संभंते समाणे उट्ठाए उऐति अंतेउर परियालं सहि संपरिवुडे
जेणेव आसोगवणिया जाव कंडरीयं अणगारं तिक्खुत्तो २ आयाहिणं जाव नमंसिचा पृथ्वी शिलापट्ट पर बैठा. और मन में संकल्प विकल्प करता हुवा. यावत् भार्तध्यान करने लगा. ॥१८॥ पुंडरीक की अम्मापात्री अशोक वाटिका में आइ वहां कुंडरीक को अशोक वृक्ष नीचे पृथ्वी शीला पट्टपर बैठ कर संकल्प विकरय करता.दुवा यावत् आर्तध्यान ध्याता हुआ देखा. उससे वह पुंडरीक गजा की पास आई और उन से कमा बहो देवानुप्रिय ! तुपारा माई कंडरीक अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष, नीचे पृथ्वी शिलापट्ट पर यत् मार्तध्यान करता हुआ बैठा है ॥ १९ ॥ अम्माघात्री की पास से ऐमा सुनकर पुंडरीक राजा संभ्रांत हुना अपने स्थानसे उठा और अंत:पुर के परिवार सीतअशोक वाटिका में
+ पुटरीक कंडक का उनीसहना अध्ययन
अर्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org