Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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का प्रथम श्रुतस्कन्ध
उद्वेत्ता जाव से जहेयं तुन्भे वदह, अं णवरं पुंडरीयं रायं आपुच्छामि तएणं जाव पन्धयामि ॥ अहासुहं देवाणुप्पिया!॥ ६ ॥ तएणं से कंडरीए जाव थेरे वदइ नमसइ २त्ता अंतियाओ पडिनिक्खमइ २त्ता तामेव चाउघंट आसरहं दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ,
जणव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छइ २त्चा करयल जाव एवं क्यासी-एवं खलु देवाणु2. पिया! मए थेराणं अंतिए धम्मे निसंते से धम्मे अभिरुइए जाव पबइत्तए॥७॥तएणंसे
पुंडरीए कुंडरीयं एवं वयासी-माणं तुम भाउया ! इदाणिं मुंडे जाव पव्वयाहि, किया. और ऐसा बोला कि अहो भगवन् ! जैसे आप कहते हो वैसे ही है. बगैरह सब आधिकार
1. परंतु विशेषता यह कि मैं पुंडरीक को पूछकर आपकी पास दीक्षित होऊंगा. स्थविरोंने उत्तर दिया जैसे सुख होवे वैसे करो ॥8॥ अब कुंडरीक युवराजा यावत् स्थविर भगवंत को वंदना नमस्कार करके उन की पास से नीकलकर अपने चार घण्टवाले अश्वरथ पर आरूढ होकर पुंडरीक की पास जाने को नीकला. वहां पहूंचते रथसे नीचे उतरकर पुंडरीक राजाकी पास गया. उनको हाथ जोडकर ऐमा बोला। कि अहो देवानुप्रिय ! मैंने स्थविर की पास से यावत् धर्म सुना है. वही धर्म मुझे रुचिकर है यावत् मैं दीक्षालेना चाहताहूं। तब पुंडरीक राना कुंडरीक को बोलेकि अहो भ्रात!तुम अघी दीक्षित मत होवो. में
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पुंडरीक कंडरीक का उन्नीसहवा अध्ययन 4Rin
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