Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
७४०
4. अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोहक ऋषिजी +
राया जाए, कंडरीए जुवराया होत्था ॥४॥ महापउमे अणगारे जाए चोइस पुव्वाति अहिजति, ततेणं थेरा बहिया जणवय विहारं विहरंति ॥ ततेणं से महापउमे अणगारे बहुणि वासाणि जाव सिद्धे ॥ ५॥ ततेणं थेरा अग्नयाकयाइ पुणरवि पुंडरिगिणीए रायहाणीए णलिणीवणे उजाणे समोसढा, पुंडरीए राया जिग्गए, कंडरीए महाजण सदं सोचा जहा महब्बलो जाव पज्जुवासति ॥ थेरा धम्म परिकहेंति, पुंडरीए
समणोवासएजाए जाव पडिगते ॥ ५ ॥ ततेणं कुंडरीए उट्ठाए उट्ठति राज्य पर स्थापन कर दीक्षित हुवा. जब में पुंडरीक राजा व कुंडरीक युवराज हुवा ॥ ४ ॥ महा पद्म अनगारने चौदह पूर्व का ज्ञानाभ्यास किया. स्थविर बाहिर देश में विचरने लगे. महापद्म राजा बहुत वर्ष पर्यंत चारित्र पालकर यावत् सिद्ध हुवा ॥ ५ ॥ तत्पश्चात् स्थविरों पुनः पुंडरिकिनी राज्यधानी के नलिनी वन उद्यान में पधारे. पुंडरीक राजा दर्शन करने को नीकला. कुंडरीक युवराजने बहुत लोगों की पास से स्थविर भगवंत नलिनी वन उद्याने में पधारे हैं ऐसा सुना. इस से वह भी महावल कुमारवत् नाकलकर यावत् पर्युपासना करने लगा. स्थबिरोंने धर्षोंपदेश दिया. पुंडरीक श्रमणोपासक हुवा यावत् अपने स्थान पीछा गया ॥५॥ कंडरीकने अपने स्थान से उठकर स्थविर भगवंत को वंदना नमस्कार
काशक-राजाबहादुर सन्तुखदेक्सझयजीज्वालाप्रसादजी
www.jainelibrary.org
For Personal & Private Use Only
Jain Education International