Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
७४४
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक रुषिनी
- भंते ! मम जाणसालामु समोसरह ॥ ततेणं तेथेरा भगवंतो पुंडयिस्स पडिसुगैतिर
ता जाव उवसंपजित्ताणं विहरति ॥ १३ ॥ ततेणं पुडरीए राया जहा मंडुए सैलगस्स जाव बलियसरीरे जाए ॥ १४ ॥ ततेणं थेरा भगवंतो पुंडरीय
आपुच्छति २त्ता बहिय जणवय बिहारं विहरति ॥ १५ ॥ ततेणं से कंडरीए अणगारे ताओ रोयातकाओ विष्पमुक्केसमाणे तांसे मणुन्नंसि असणपाणखाइमं साइमंसि मुच्छिए गिडिए गढिए अझोववण्णे णो संचाएइ पुंडरियरायं आपुच्छित्ता बहिया
थेरेहिं सद्धिं जाव विहरित्तए, तत्थेव उसपणे जाए ॥ ततेणं पुंडरीए राया इमीसे कहाए करानूंगा. इस से अहो भगवन् ! आप मेरी यानशाला में पधारो. स्थविर भगवंत पुंडरीक की बात पुनकर वहां गये. यावत् उनकी आज्ञा लेकर वहां विचरने लगे ॥ १३॥ जैसे मंडक राजाने शेलग राजर्षि का उपचार किया था धैसे ही पुंडरीक राजाने भी कंडरीक के उपचार किये. यावतू बलवंत शरीर में
वाले हुए ॥ १४ ॥ स्थविर भगवंत कुंडरीक को पूछकर बाहिर देश में विचरने लगे ॥ १५ ॥ अब हैकंडरीक उस राग से मुक्त होने पर भी मनोज्ञ अशन, पान, खादिम, स्वादिम में मूञ्छित गृद्ध व तल्लालीन
बनने से पुंडरीक को पूछकर बाहिर स्थविरों की साथ विचरने. को समर्थ हुचा नहीं और वहां ही उसण्ण (टीले) बने. पुंडरीक को इस बात की मालूम होते ही स्नान करके अंत:पुर की रानीयों की साथ कंड
•काशक सजाबहादुर लालासुखदवसहायजा ज्वालाप्रसाद
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org