Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
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अनुवादक-बारू ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
वयासी-माणं तुमं देवःण पिया ! जाव माहराहि, तुमणं देवाणुपिया ! लवण समुद्दे अप्पछ? सछण्णं रहाणं लवण समुदे मग वितराहि, सयमेवणं अहं दोवतीए कूवं गच्छामि ॥ ततेणं से मुट्टितेदेव कण्हवामदेव एवं क्यासी-एवं होऊणं पचहिं पंडवहिं साई अप्पछटुस्स छण्हं रहाणं लवण ममई मग्गवितरति ॥ ततेणं से कण्हेवामुदवे चाउगिणिसेण पडिविसज्जति २त्ता पंचहिं पडवेहि सद्धिं अप्पछट्टे छहि रहहिं लवण समुदं भज्झमझगं वीतियति २ जगव अमरकंकारायहाणी जेणेव अमरकंकारायहाणीए अग्गुमाणे तणेव उवागच्छइ २त्ता रहं वेति २ त्ता, दारुयं सारहिं
सद्दावेचीइ सदावे एवं वयानी-गच्छहणं तुम देवाणुपिया ! अमकंकारायण मत करों, तुम हम को और हमारे रथों को लाण ममुद्र मे पार उतार दो. हम स्वयमेव द्रौपदी की साहाय करने का जागे. तब मुस्थित देवने कृष्ण वासुदेव को कहा कि पांचों पांडव,छठे तुम व तुम्हारे छड़ी के रथ लवण समुद्र के पार होवे वैसा होवो. तत्पश्चात कृष्ण वासुदेवने चतुगिनी सेना विसर्जित की. और पांच पांडा व छ रथलकर कृष्ण वासुदेव लाण ममुद्र उल्लंघने लगे. वहां से जहां अगर का राज्यधानी थी वहां आकर उस के बाहर अंग उद्यान में रथखड किय. दारुण सारी को बोलाकर कहा कि अहा देवानमिष ! तुप अमरका राज्यधानी में जाओ और वहां जाकर
प्रकाशक रानाबहदुर लाला सुखढव सहायजी ज्वाल प्रसाद जी
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