Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 694
________________ dan2Z. 'उजाणे 'जाव विहरंति ॥ २०७॥ तत्तेण ते जहिट्रिलवजा चत्तारि अणगारा.. : मासखमण पारणए पढमाए पोरिसीए. मझायं करति बीयाए एवं जहा. गोयमसामी ! णवरं जुहिद्दिलं ‘आषुच्छंति जाव ' अडमाणा. बहुजणसई णिसामेति एवं खलु देवाणुप्पिया अरहा अस्टुिनमी उजंत सेलसिहरे मासिएणं भत्तेणं अपाणएगं पंचहि छत्तीसेहिं अणगारसएहिंसाई कालगए. जाव सन्ध दुक्ख • पहीणे । ततेणं जुहिटिन वजा चत्तारि अणगारा बहुजणस्स अंतिए एयमटुं सोचा हत्यिकप्पाओ पडिणिक्खमाले २त्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जेणेव जुहिट्टिले ग्राम विचरते यावत् दृस्ति कल्प नगर की वागिर सहस्रवन नामक उद्यान में पधारे. ॥२०७॥ वहां माम क्षमण #के पारने के दिन युधिष्ठिर सिवाय चार अनगारने प्रथम प्रहरसी में स्वाध्याय की, दूपरी में ध्यान ध्याया, यों जैमे गौतम स्वामी का अधिकार है वैसही करके युधिष्ठिर अनगार को पूछकर यावत् ऊंच नीच मध्यम कुल में गौचरी के लिय परिभ्रमण करते हुने बहुत लोगों की पाम से ऐसा मुना अरिहंत अरिष्ट नेमी न्ति पर्वत पर एक पाम पर्यंत भक्तपान रहित पांच सो . छत्तीस' अनगार की साथ कालधर्म का प्राप्त हुने गावत् सब दुःखों से रहित बने. युधिष्ठिर निवाय चार अनगारों बहुत लोगों की पास से ऐमा 11 सुनकर इस्तिकल्प नगर में से निकलकर बाहिर सहसाम्प उद्यान में गुधिष्ठिर अनगार की पास पधारे..। अनवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी .प्रकाकि-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजीज्वालाप्रमादजी. अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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