Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पष्टगतापर्षकथा का प्रथप श्रुतस्कंध 42.
"सगडासागडं भरेति २ तासगडीसागडं जोएति . २ सा, जेणेव हस्थिसीसे नयरे
तेणेव उवागन्छइ २ ता, हत्थिसीसस्स नयरस्स बहिया अगुजाणे सत्थणिवेसं करेति २त्ता सगडासागडं माएति २ चा महत्थं जाव पाहुडं गेण्हति २ त्ता हत्थिसीसं नगरं अणुपविसति २सा जेणेव से कणगकेऊ राया तेणेव उवागच्छइरत्ते। जाब उवणेति ॥ ११ ॥ ततेणं से कणगकेऊ राया । तेसिं सजुत्ता वाणिवगाणं तं महत्थं २ जाव पडिच्छति...२ ते संजुत्तावाणियगा एवं वासी
तुम्भेणं देवाणुप्पिया ! बहुणिं गामागर जाब आहिंडह. लषणसमुहंच अभिक्खणं २ वायु से जहां गंभीर पोतरण था वहां आये. वहां जहाजों का लंगर डाला. गाडे गाडी भर लिये. उनको जोनाकर हस्तिशीर्ष नगर की तरफ गये और उस की बाहिर अंग उद्यान में पडाव किया. वहां गाडाओं छोडाये और महा मूल्यवाला भेटणा लेकर हस्तिशीर्ष नगर में प्रवेश किया और कनककेत राजा की पाम जाकर यावत् स भेटणा रख दिया ॥११॥ कनककेतु राजानें उन सांयात्रिक वणिकों का महा मूल्यवाला भेटणा का स्वीकार किया और उन को. पूछा अहो देवानुप्रिय ! तुपने बहन ग्राम आगर नगर यावत् परिभ्रमण किया है और वारंवार जहाजों से लवण समुद्र में भी तुमने प्रवास किया है।
१ जहाज खडा रखने का स्थान,
4. आकीर्ण जाति के घाटे का सतरवा अध्ययन 31.
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