Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4- अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
समुदएणं णीहरणं करेति, गीहरणं करेत्ता बहुतिं लोइयातिं मयकिच्चाई करेइ २ त्ता जाव विगय सोया जायायावि होत्था॥ १९ ॥ ततेणं ताई पंच चोर सयाति अन्नमन्न सदाति, २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु अम्हं देवाणुपिया ! विजएचोर सेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते अयंचणं चिलाए तक्करे बिजएणं चोरसे णावइणा बहुओ चोरविज्जाओय जाव सिक्खाविए, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया ! चिलायं तकर सीहगुहाए चोरपलीए चोरसेणावइत्ताए अभिर्सिचित्तए त्तिकटु, अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेत्ता, चिलायं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचति ॥ ततेणं से चिलाए
चोरसेणावती जाए अहंम्मिए जाब विहरति ॥ ततेणं से चिलाए चोर सेणावती को महामूल्यवान ऋद्ध सत्कार समुदाय से नीहारन किया और लोकिक मृत्यु कर्म भी किया यावन् बहुत दिनों में शोक रहित हुए. ॥ १२ ॥ तत्पश्चात पांचसो चोरों एकत्रित मीलकर परस्पर ऐसा कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! विनय चोर सेनापति काल धर्म को प्राप्त इबा है. उनने इम चिलात चोर को व चोर की विद्या, मंत्र, माया वगैरह सिखलाया है इस मे अहो देवानुप्रिय ! अपने को चिलात चोर को सिंहगफा नामक चार पल्ली में सेनापति बनाना श्रेय है. सबने यह बात मान्य की और चिलात चोर को सेनापति बनाया. तब वह चिलात सेनापति हुवा. वह भी विजय चोर जैसा अधर्मी यावत् विचरता था..
सायक-राजाचहादुर डाका मुखदेवसहायनी वाला प्रसाद नी०
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