Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ततेणं तुम्भे ममं देवाणुपिया! जीवियाओ ववरोवेह मम मंसंच सोणियंच आहारेह ॥ तेणं आहारेणं अबधट्टा समाणा, ततो पन्छाइमं आगामियं अडविं मित्थरिह रायगिहं संपाविहह मित्तणातिणिय अभिसमागच्छीहह अत्थस्सय धम्मस्सय पुण्णस्सय आभोगी भविस्सह ॥ ३५ ॥ ततेणं से जेटुं पुत्ते धण्णेणं सत्थवाहणं एवं कुत्ते समाणे धणं सत्थवाहं एव वयासी-तुम्भेगं ताओ ! अम्हं पिया गुरु जणया देवयभूया टुक्का पाइट्ठवका संरक्खगा संगोबगा तं कहण्हं अम्हे ताओ ! तुम्भे जीवियाओ ववरोबेमो तुम्भेण मंसंघ सोणियच आहारेमो, तं तुम्भेणं ताओ ! मम जीवियातो ववरोवेह
मंसच सोणियंच आहारेह आगामिय अडविं णित्थरेह संचेव सव्वं भगइ जाव ग्रामविना की अटवी को पार करना राजगृह नगर को पहूंच जाना, मिष शाति अनों को पीलना, और अर्थ, धर्म व पुण्यादि को भोगना. ॥ ३५ ॥ धना सार्थवार का ऐसा बचन सुनकर ज्येष्ठ पुत्र बोला कि अहो तात ! तुम हमारे पिता को हमारे पूज्यनीय हो, गुरुदेव समान हो, स्थापक हो, प्रतिस्थापक, संरक्षण व गोपन करने वाले हो. अहो तात ! तप हम आप को कैसे जीवित से पृथक करे और आपके मांस व रुधिरका आहार करे. ? अहो तास ! इस से तुम मुझे मार डालो और मेरे पांम व रुधिर का बाहार करो. इस से तुम अटवी का पारकर. सकोगे यावत् अर्थ धर्म पुण्यके मागी बनोगे. तब दूसरा पुत्र ऐसे बोलने
प्रकाशक-राजावह'दुर लाला मुखदव महायजी ज्वालाप्रसादजी
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