Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्टांग ज्ञाताधकथा का प्रथम श्रृवस्कन्धAN
होत्था ॥१६॥ जाहे वियणं से विजए चोर सेणावती गामघायंवा, जाव पंथ कोटिंवा काउवे यति,ताहे वियणं से चिलाए दासचेडे मुबहुं पियकुवियबलं हयमंहिय आव पडिसेहेइ, पुणरवि लट्टे कयकज्जे अणह समग्गे सीहगुहं चौरपालि हबमामछातै ॥ १७ ॥ ततेणं से विजएचोर सेणावती चिलायं तकर बहुओ चोर विजाउय चोरमंतेय, चोरमायाओय,चोर निगडीओय, सिक्खावेइ ॥ १८ ॥ ततेणं से विजय चोरसंणावई अन्नया कयाई काल धम्मुणा संजुत्तेयावि होत्था ॥ १९ ॥
ततेणं से ताई पंच चोर सयाति विजयस्स चोरसेणावइस्स महया महया इड्डी सक्कार विजय चौरका अग्रभागी अधिकारी हुवा. ॥ १६ ॥ जब विजय चोर सेनापति ग्राम की घात करे यावन् | पथिक को लूटे तब वह चिलात दास चेटक विजय चौरैकी पीछ रहकर उन की साहाय के लिये आये हुये लोगोंको मारकर दशों दिशी में भगाता हुवा उन से धनादिलिंटकर अपने कार्य की सिद्धि करता हुवा उपद्रव रहित सिंहगुफा नामक चोर पल्ली में आजाता था. ॥१७॥ तब विजय चोर सेनापतिने चिल तर चारको बहुत चोरकी विद्या. चोरी के मंत्र, चोरकी माया. चोरी गोरे की कला सिखलाइ. ॥१८॥ एकदा विजय चोर सेनापति काल पर्ष को प्राप्त दुवा. ॥ १९ ॥ तत्पश्चात वे पांचसो चोरोने विजय चोर सेनाति
सुषुपादारिकाका अठारहवा अध्ययन 42
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