Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
+
२०१
बहवे गुलस्स जाव. अन्नेसिंच बहुणं जिभदिय पंजय निकरेय करति . २ ता । । वियरए खणंति २गुलपाणगस्सय खंडपाणगस्तय अन्नेसिंच पोरपाणगस्सय बहुणंपाणगाणं विययरे भरत रत्ता तसिं परिपेरंतेणं पासए ठवेति २त्ता जाव चिटुंति ॥ जहिं २चणं ते आसा आसयंति जाव तुयर्सेति तहिं २ वहवे कोयवया नाव सिलावटया अण्णाणिय फासिंदियाई अत्थय पवुत्थयाई ठवेति २ ता तेसिं परिपेरंतेणं जाव चिटुंति ॥ १६ ॥ ततेणं ते आसा जेणेवा उक्किट्ठ सह फरिस रस रूव गंधा
तणेव उवागच्छइ २त्ता तत्थगं अत्येगइया आसा अपुवाणं इमे सह फरिस रस रूब बहुत सुगंधि वस्तुओं का समुदाय रख कर यावत् निश्चल खडे रहे. जहाँ २ वे घोडे बैठते उठते थे वहां २ मकर गुड यावत् अन्य बहुत जिव्डेन्द्रिय के योग्य द्रन्यों के समुह किये, वहां खड़े बनाकर उम में गुड सक्कर का पानी व अन्य पीठे पानी भरे और उन की आसपास के लोगों शांत मौन खडे रहे. और भी जहां वे घोडे बैठते उठते वहां रुइ से भरे गले यावत् शिलापट्ट वस्त्र और अन्य सुखदाइ वस्त्रों के विछोने में
वछ पे. और वे लोगों उन की आसपास पौन खडे रहे ॥ १६ ॥ अब वे अश्यों जहां उत्कृष्ट शब्द, 1.स्पर्श, रूप, रस, गंगवाले पदार्थों थे वहॉ अये, उन में से कितोक अश्वों शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध |
+ षष्टाङ्गज्ञाताधर्मकथाका प्रथम श्रतरकंध +
आकीर्ण जाति के घड का सतरह
अध्ययन
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Personal & Private Use Only