Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ततेणं तें बहवे दारगाय ६, रोयमाणाय साणं २ अम्मापियरं णिवेदेति ॥ ततेणं तेसिं बहुणं दारगाणय६ अम्माषियरो जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ२ चा धण्णस्म सत्थवाहस्म एयमटुं णिवर्देति ॥ ततेणं से धण्णे सत्थवाहे चिलायंदास चडयं एयमटुं भुज्जो २ णिवारेति, णो चवणं चिलाए दासचेडे उवरमति ॥ ततेणं से चिलाए दास चेडे तेसिं बहुणं दारगाणय ६, अप्पेगतियाणं खल्लए अवहरति जाव तालेति ॥ ततेणं ते बहवे दारगाय ६, रोयमाणो ५, जाव अम्मापिऊणं णिवेदेति ॥ ततण ते आपुरत्ता५, जेणेव धण्णे सत्यवाहे तेणेव उवागच्छइ रत्ता.बहुहिं खिजमाणेहिं
जाव एयमढे निवेदेति ॥ ततेणं ते धण्णेसाथवाहे बहुणं दारगाणं ६, अम्मापिऊणं गैरह चोरने लगा,कितनको निर्भत्सना,तनाव ताडनादि करने लगा. तब वे बालको रुदन करते हुवे अपनेर पात पिता की पास आये और उन को यह सब कह दिया. उन के मातपिता धना मार्थवाहकी पास आयेॐ
और उन को अपने बालकों की सब बात कही. धना मार्यवाहने चिलात दास को ऐमा नहीं करने के लिये वारंवार कहा परंतु ऐने कृत्यों से वहरुका नहीं. तत्पश्चात् भी वह चिलात दास कितनेक बालकों के
कोडाकोडी में लेने लगा यावत् ताडना करने लगा तब वे अपने मात पिता की पास रूदन करते हुवे उसे 17बात कहने लगे. तब वे आसुरक्त बनकर धन्ना सार्थवाह की पाप्त आये और उन से बहुत खीजते हुये है।
अनुवादक-मालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोल ऋषिजी ,
पकाधक-राजावहादुर काला मुरुदवसायजी ज्वालाप्रसादजी
अथे
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