Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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षष्टांत हाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
म्बिय पुरिसेहि साई कालिया दीवाओ ते आसे आणेह ॥ १३ ॥ ततेणं ते संजत्तावाणियगा कणगऊरायं एवं बयासी-एवं सामिात्त आणाए विणएणं पडिमुणेप्ति २ ॥ १४ ॥ ततेणं से कणगकेऊराया कोडुवियपुरिसे सहावेइ २ ता एवं वयासी-गग्छहणं तमं देवाणुप्पिया ! संजत्तएवाणियगेहिं सहि. क लिय दीवाओ मम आसे आणेह, तेवि पडिसुति ॥ १५ ॥ ततेणं ते कोडुबिय पुरिसे सगड सागडं सजेति ॥ तत्थणं बहु-वीणाणय, वल्लकीणय, भामरीणय,
कच्छमीणय, भंभाणय, छन्भागरीणय, विचित्त बीणाणय, अन्नसिंच बहुणं सौतिदिय और.उस कालिक द्वीप से अभोंको लावो ॥१३॥ तब वे सांयात्रिक कनककेतु राजा को ऐसा बोलने लगे कि अहो स्वामिन् ! ऐसे ही हम करेंगे, यो उन की आज्ञा मान्य की. ॥ १४ ॥ कनककेतु राजा कौम्बिक पुरुषों को पोलाकर ऐसा कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! तुम इन सांयात्रिक वणिकों की साथ कालिक द्वीप में जाओ और वहां से अश्वोलेकर आओ. उनों ने भी वैसे ही इस बात का स्वीकार किया ॥ १५ ॥ कौटुंबिक पुरुषों ने गोडे गाडी सज्ज किये, उस में बहुत वीणा, वल्लकी भयाधरी, कच्छम, भंभ, भमरी, वगैरह विचित्र प्रकार के वात्रि और भी अन्य श्रोत्रेन्द्र के योग्य द्रव्यो गाडे भरे, कृष्ण वर्ण वाले
'१ लोहतांत २ वीणा विशेष, ३ जे, वीणा सरस्वती के हाथ में होती है ४ भेरी वादिन.
आकाणे माति के घड का सतरवा अध्ययन
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