Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4+ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
जाव कालं अणव कंखमाणा विहरति ॥ २०८ ॥ ततेणं से जुहिट्ठिल पामोक्खा पंच अणगारा सामातियमातिघाति योद्दस पुवाई,अहिजित्ता बहुणि वासाणि,सामण्णपरियागं पाउणित्ता दोमासियाए संलेहणाए अत्ताण ज्झोसित्ता जस्मट्राए किरति णग्गभावे जाव तंमट्टे माराहतिरत्ता, अणंते णाणे समुपण्णे जाव सिद्धा॥२.९॥तवेणं सा दावली अज्जा सुध्धयाणं अज्जियाण अंतिते सामाइयमाइयाइ एक्कारस अगाति अहिजति २त्ता. बहुणि वासाणि, सामाण परियागं पाउणित्ता मामियाए संलेहणाए, आलोइय पडित समाहित्ता कालमासे कालकिच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उवण्ण तत्थगं
अत्यंगतियाणं देवाणं वस. सागरोवमांई ट्ठिई पन्नत्ता ॥ तत्थणं दुवतिरस देवस्त पर्वत पर शनैः २ चाकर काल की वांच्छा नहीं करते हुये यावत् विचरने लगे ॥ २८ ॥ अब युधिष्ठिर प्रमुख पांचों अनगार सामायिका दे चौदह पूर्व का अध्ययन कर बहुत वर्ष संयम पालकर दो मास की संलेखना से अल्मा को झाँसकर जिस रिय साधुपना अंगीकार किया था उस की आराधना कर अनंत केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्त कर यावत् सिद्ध हुवे ॥२०१॥ द्रौपदी आर्या सुत्रता आर्या की पाम मामाथिकादिम अग्यारह अंग का अध्ययन कर बहन वर्ष संयम पालकर एक मास की संलेख ना सहित आलोचना प्रतिक्रमण कर काल के अवसर में काल कर पांचो ब्रह्म देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुई. वहां कितनेक
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव महायजी ज्वालाप्रसाद नी.
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