Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
णमंसित्ता एवं वयासी-गच्छामिणं अहं भंते ! कण्हवासुदेवं उत्तमपुरिसं सरिसपुरिसं . पासामि ॥ ततेणं से मुणिसुब्बए अरहा कपिलं वासुदेवं एवं वधासी-नो खलु देगणुपिया ! एयं भूयंवा ३ जणं आहेतावा आहतं पासति,चक्कवट्टीवा चक्कवष्टिं. पासति, बलदेवो वा बलदेवं पासंति वासुदेवो वासुदेवं पासति तह रियणं तुमं कण्हवासुदेवस्स लवणसमई मज्झमझेणं गतीवयमाणस्त सेयापीयाति धयसामग्ग पासिहसि ॥१८॥ततेणं से कपिले वासदेवे मुणसुव्वयं अरहतं वंदति नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता हत्थिखधं दुरुहति २ त्ता सिग्धं २ जेणेव वेलाउले तेणव उवागच्छइ २ ता कण्ह जैसा ही इष्टकारी कंतकारी है. कपिल वासुदेव मुनिसुव्रत अरिहत को वंदना नमस्कार कर ऐना बोलने लगे कि अहो भगवन् ! मैं मेरे जैसे . उत्तम पुरुष कृष्ण बामुदेव को देखने को (मीलने को) जाता हूं. तब मुनिमुनत अरिहंत कपिल वासुदेव को कहने लगे कि अहो देवानुपिय! अरित आरइंतको मील, चक्रवर्ती
चक्रानी को मीले, बलदेव बलदेव को पीले व वासुदेव वासुदेव वासुदेवको मीले ऐमा में अतीत काल में नहीं हुवा है, वर्तमान में नहीं होता है और भविष्य में होगा भी नहीं. इस से तुम लवण समुद्र में जाते हुवे कृष्ण वासुदेवके रथ की वतपीत वनाओं देखोगे. ॥ १८३ ॥
वासुदव मुनिसुव्रत अरिहंस को बंदना नमस्कार करके हाथी पर स्वार होकर शीघ्रमेव जहां लवण
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प्रकाधक-राजाबहादुरलाळा मुखदवसहायजा ज्वाला प्रसादमा
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