Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अर्थ
44+पष्टां ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 488+
गया हो ॥ १९८ ॥ तएणं दोवतीदेवी अन्नयाकयाई आवण्णसत्ता जायायावि होत्या ॥ तत्थणं सा देवातीदेवी जवण्हंमासाण जाव सुरूवं दास्यं पयाया जाव सुकुमाले, वित्त बारसाहस्स इमं एयारूवं अम्हाणं अम्हे एस दार पंचण्डं पंडवाणं पुत्ते दोवतीए देवीए अन्तर तं होऊणं अम्हे इमस्स दारगरस नामधेजे पंडुसेणे ॥ ततेणं तस्स दारगस्स अम्मापिपरो नामधेज्जंकयं पंडुसेणेत्ति, वावरिं कलाओ जाव भोगसमत्थे जाए जुवराया जाव विहरति ॥ १९९॥ ते काणं तेणं समएणं धम्मघोसा थेरा समोसढा, परिसाणिग्गया, पंडवा निग्गया, धम्मः सोचा, एवं वयासी जं णवरं देवाणुध्विया ! दोवर्तिदविं आपूच्छामो पंडुसणं च वहां पांडु मथुरा नगरी बसाकर विपुल भोग समृद्धि प्राप्त की ।॥ १९८ ॥ { सबानब मास पूर्ण हुए पीछे यावत् स्वरूपवान पुत्र का जन्म हुआ. बारह नाम रखा कि यह पांच पांडव का पुत्र व द्रौपदी देवी का आत्मज है, इस से
एकदा द्रौपदी देवी गर्भवती हुई. दिन व्यतीत हुए पीछे ऐसा इस पुत्र का पांडुसेन नाम होवो.
{ वत्पश्चात् उप्त पुत्र के मात पिताने उस का नामपांडुसेन रखा. बहत्तर कला पढकर यावत् भोग संमर्थ बना हुवा {युवराज पद प्राप्त कर यावत् विचरने लगे ॥ १९९ ॥ उस काल उस समय में धर्मं घोष स्थविर पधारे. परिषदा बंदम करने को निकली. पांडवों भी गये. धर्म श्रवण कर ऐसा बोले अहो देवानुप्रिय !
द्रौपदी देवी को
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++ द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन 4
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