Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4 तस्स कविलस्सकासुदेवरस इमेयारूचे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था, किंमण्णेधायइ ::
संडेदीवे भारहेवासे दोच्चे वासुदेके समुप्पणे, अस्सणं अयंसंखसद्दे ममंपिव मुहवाय परियेधियं भवति कविलवासुदेवे सद्दाइ मुणेइ मुणिसुव्वते अरहा कविलं वासुदेवं एवं वयासी-नूणं कविला वासुदेवा ! मम अंतिए धम्म गिसम्मेमाणस्त संखसदं आकणित्ता इमेयारूवे अज्झथिए किंमन्ने जाव वियंभवइ, सेनूणं कविला वासुदेवा! अटे सम? हंता अस्थि, तं नो खलु कविला एवं भूयबा णएवं भवइ णएयं
भबिस्सइ जन्नं एखेत्ते एगे जुगे एगं समएणं दुवे अरिहंतावा चक्कबट्ठीवा बलदेवावा अर्थ में हुवा कि क्या धातकी खण्ड के भरत क्षेत्र में कोई दूसरा वासुदेव उत्पन्न हुवा, क्यों कि जैसा मैं मेरे
शंख का शब्द मुख से करता हूं वैसे ही इस का शब्द मैं सुनता हूं, तब मनिसुव्रत अरिहंत कपिल वासुदेव को कहने लगे कि अहो कपिल वासुदेव ! मेरी पाम धर्म श्रवण करते हुवे शंखका शब्द सुनकर तुझे ऐमा अध्यउसाय हुवा कि इस धातकी खण्ड के भरत क्षत्र में क्या कोई दूसरा वासुदेव है क्यों
कि जैसे मेरे शंखका शब्द होता है वैसे ही इस शंखका शब्द मैं सुनता हूं. अहो कपिल वासुदेव क्या यह 15 अर्थ समर्थ हैं ? हां भगवन् ! मेरे मन में ऐसा अध्यक्साय हुवा. अहो कपिल वासुदेव ! एसा हुरा नहीं है
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्रा अमोलक
• प्रकापाक-राजाकहादुर लाला सुखदेवसापजीज्वालापसानी
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