Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ततेणं से . कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सएणं खंधावारेण साई अभिसमण्णागएयावि. होत्था ॥ ततेणं से कण्हवासुदेवे जेणेव बाराबतीए णयरीए तेणेव उबागल्छइ २ ता अणुपविसते ॥ १९२ ॥ ततेणं ते पंडवा जेणेवा इत्थिणाउरे गरे तेणेव उवागच्छइ२त्ता जेणेव पंडराया तेणेव उवागच्छइयत्ता करयल जाव एवं बयासी- एवं खलु ताओ ! अम्हे कण्हेणं वामदेवेणं णिबिसिया आणता ॥ तएणं पंडराया पंच पंडवं एवं वयासी कहणं . पुत्ता! तुब्भे कण्हवायुदेवे णिविसया आणत्ता? ॥ततेणं ते पंचपंडवे पंडरायं एवंवयासी
एवं खलु ताओ ! अम्हे अमरकंकातो पडिमियत्ता लवण समुदं दोणि जोयण सय अब कृष्ण वासुदेव अपने सैन्य में गये और उन से मिले. वहां से द्वारिका नगरी में प्रवेश किया। ॥ १९२ पांचों पांडवों हस्तिनापुर नगर में पांडराजा की पास गये और हाथ जोडकर कहा कि बहो पिताजी हम को कृष्णवासुदेव ने दशपार किये है. तब पांडू राजाने पांचों पांडवों को कहा कि अहो
पुत्रों ! तुम को कृष्ण वासुदवने किस लिये देश पार किये हैं? तब पांचों पांडवों पांडु राजा को कहने लगा 12 कि अमरकंका नगरी से पीछे आते दो लक्ष योजन का लवण समुद्र का उल्लघन किया. वहां से कृष्ण
वासुदेवने हम को नदी तीर कर जाने का कहा. हम एक नावा लेकर तार गये परंतु कृष्ण वासुदेव के लिये वाछी नावा भेजी हां नहा : भार ही खेड रहे. वहां कृष्ण बामुदेव लवण समुद्र के आधिपति मुस्थित देव को
षष्टांङ्ग शताधकथा का प्रथम श्रुतस्कंध HI
ट्रैपदी का सोलहवा अध्ययन 4-11
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